आलोचना >> साहित्य-सहचर साहित्य-सहचरहजारी प्रसाद द्विवेदी
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प्रस्तुत पुस्तक में साहित्यिक श्रेणी की पुस्तकों के अध्ययन करने का तरीका बताना ही आचार्य द्विवेदी जी का संकल्प है
साहित्यिक पुस्तकें हमें सुख-दुःख की व्यक्तिगत संकीर्णता और दुनियावी झगड़ों से ऊपर ले जाती हैं और सम्पूर्ण मनुष्य जाति के और भी आगे बढ़कर प्राणिमात्र के दुःख-शोक, राग-विराग, .आह्लाद-आमोद को समझने की सहानुभूतिमय दृष्टि देती हैं। वे पाठक के हृदय को इस प्रकार कोमल और सवेदनशील बनाती हैं कि वह अपने क्षुद्र स्वार्थ को भूलकर अशिवों के सुख-दुःख को अपना समझने लगता है - सारी दुनियाँ के साथ आह्लाद का अनुभव करने लगता है। एक शब्द में इस प्रकार के साहित्य को 'रचनात्मक साहित्य' कहा जा सकता है क्योंकि ऐसी पुस्तकें हमारे ही अनुभवों के ताने-बाने से एक नये रस-लोक की रचना करती हैं। इस प्रकार की पुस्तकों को ही, संक्षेप में 'साहित्य' कहते हैं। साहित्य शब्द का विशिष्ट अर्थ यही है। प्रस्तुत पुस्तक में इस श्रेणी की पुस्तकों के अध्ययन करने का तरीका बताना ही आचार्य द्विवेदी जी का संकल्प है।
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