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कला-संगीत >> राग और रस के बहाने

राग और रस के बहाने

केशवचन्द्र वर्मा

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1993
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 13261
आईएसबीएन :0

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संगीत का सामान्य ज्ञान जहाँ इस पुस्तक में एक ओर उपलब्ध है वहीं राग और रस के तन्मयी भाव की भी गहरी व्याख्या है

''राग और रस के बहाने'' श्री केशवचन्द्र वर्मा की संगीत विषयक तीसरी महत्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय जीवन में समाहित मूल्यों को संगीत कला के माध्यम से पहचानने की कोशिश की है। संगीत का सामान्य ज्ञान जहाँ इस पुस्तक में एक ओर उपलब्ध है वहीं राग और रस के तन्मयी भाव की भी गहरी व्याख्या है।
इलाहाबाद युनिवर्सिटी के संगीत विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष एवं देश के मान्य संगीत विद्वान पं० रामाश्रय झा के शब्दों को उद् घृत करें तो- 'श्री केशवचन्द्र वर्मा ने आज से पचास वर्ष पूर्व उत्तर भारत में संगीत का प्रचार जैसा चल रहा था-जिस तरह के संगीत साधना में लगे हुए साधक, गायक, मनीषी कार्य कर रहे थे, जिस तरह के मानक संगीत सम्मेलन हुआ करते थे, जिस तरह से गुरु- शिष्य परम्परा का पालन करते हुए अनेक कलाकार संगीत आकाश के प्रकाशपुंज नक्षत्र बन रहे थे, जिस तरह कला की प्रतिष्ठा के लिए पारखी लोग अपना सब कुछ लुटा देने की साम -र्प रखने, थे - उसी महान संगीत परम्परा के बीच रह - संस्कार ग्रहण किया है। उनका यही सम्‍पन्‍न, सस्कार ही श्री केशवचन्द्र वर्मा को अन्य सभी सगीत कला के आलोचकों से अलग एक विशिष्ट कोटि की श्रेणी में रख देता है। उनकी इस पुस्तक में जगह-जगह पर उनके इस संगीत सुनने के लम्बे अनुभव की झलक बराबर मिलती है।'

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