आलोचना >> प्रेमचन्द के उपन्यासों में समकालीनता प्रेमचन्द के उपन्यासों में समकालीनतारजनीकांत जैन
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इसके अन्तर्गत उन सभी उपन्यासों के ‘कथानक’ एवं ‘प्रासंगिकता’ का अध्ययन किया गया है
प्रेमचंद के उपन्यासों में समकालीनता - प्रेमचन्द के उपन्यासों में जिन राष्ट्रीय, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक आदि समस्याओं का चित्रण है, वे आज भी वर्तमान समाज में व्याप्त हैं। केवल उन समस्याओं के रूप या बाहरी मुखौटे मात्र बदल गये हैं, पर वास्तव में वे समस्यायें आज भी मूल में वैसी ही हैं। प्रस्तुत पुस्तक में तीन खण्ड हैं। पहले खण्ड में उपन्यास के तत्त्वों का विवेचन हुआ है। इसके अन्तर्गत प्रधानत: कथानक पर प्रकाश डाला गया है इसके पश्चात् प्रथम खण्ड के दूसरे भाग में ‘प्रासंगिकता’ शब्द के तात्पर्य को स्पष्ट किया गया है। द्वितीय खण्ड में प्रेमचन्द के सभी प्रमुख उपन्यासों का विवेचन किया गया है। इसके अन्तर्गत उन सभी उपन्यासों के ‘कथानक’ एवं ‘प्रासंगिकता’ का अध्ययन किया गया है। तृतीय एवं अन्तिम खण्ड में प्रेमचन्द के सभी उपन्यासों की प्रासंगिकता का समग्र मूल्यांकन किया गया है।
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