आलोचना >> पाश्चात्य काव्यशास्त्र : अधुनातन संदर्भ पाश्चात्य काव्यशास्त्र : अधुनातन संदर्भसत्यदेव मिश्रा
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प्रस्तुत कृति संगोष्ठियों में विमर्श के अधुनातन संदर्भों से सम्पूक्त है
आधुनिक हिन्दी-समीक्षा के स्वरूप - विश्व में पौर्वात्य से कहीं अधिक पाश्चात्य समीक्षा-दर्शन का अनुप्रभाव परिलक्षित हो रट्टा है। आज विश्वविद्यालयों और प्रतियोगी-परीक्षाओं में जिन समीक्षा-सिद्धान्तों, आलोचनात्मक प्रत्ययों, समीक्षा-आंदोलनों की चर्चा का विषय बनाया जा रहा है प्रश्नांकनों की कसौटी पर कसा जा रहा है उनमें से आधिकांश पाश्चात्य भाषा-विमर्श साहित्य-कला-दर्शन और अन्य साहित्येतर अनुशासनों से अनुस्यू त हैं। इन नवोन्मेषी सिद्धांतों-वादों और समीक्षात्मक संकल्पनाओं, साहित्येतर अवधारणाओं का प्रामाणिक विमर्श इस ग्रन्थ में है। प्रस्तुत कृति संगोष्ठियों में विमर्श के अधुनातन संदर्भों से सम्पूक्त है। विश्वास है कि शिक्षकों-शिक्षार्धियों, प्रतियोगियों और जिज्ञासुओं के लिए यह उपादेय सिद्ध होगी।
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