आलोचना >> पन्त, प्रसाद और मैथिलीशरण पन्त, प्रसाद और मैथिलीशरणरामधारी सिंह दिनकर
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प्रस्तुत पुस्तक में हिन्दी के तीन सुप्रसिद्ध आधुनिक कवियों पर स्वतंत्र रूप से अलग- अलग तीन निबन्ध संग्रहीत किये गये हैं
प्रस्तुत पुस्तक में हिन्दी के तीन सुप्रसिद्ध आधुनिक कवियों पर स्वतंत्र रूप से अलग- अलग तीन निबन्ध संग्रहीत किये गये हैं।
मैथिलीशरण गुप्त की कविताओं का अध्ययन इस दृष्टि से किया गया है कि उन्नीसवीं सदी में आरम्भ होने वाले हिन्दू जागरण अथवा भारतीय पुनरुत्थान की अभिव्यक्ति उनमें कैसे और किस गहराई तक हुयी है।
पंत साहित्य में पल्लव, वीणा, गुंजन और ग्रंथि को जो प्रसिद्धि मिली, वह पंत जी की बाद की पुस्तकों को नसीब न हुयी। इस निबन्ध में दिनकर जी का ध्येय इस बात का अनुसंधान रहा है कि गुंजन के बाद से लेकर अब तक पंत जी क्या करते रहे हैं। इस निबन्ध ने गुंजनोत्तर पंत साहित्य की एक छोटी सी पीठिका तैयार कर दी है।
प्रसाद जी पर जो निबन्ध हैं उसमें केवल कामायनी का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। कामायनी के सुगंभीर ग्रंथ के अध्ययन के क्रम में होंगे और विद्वानों के विचारों को ऊँचे धरातल पर
विचरण करने का अवसर प्राप्त होता है। दिनकर जी का प्रयास इस काव्य के अध्ययन- क्षितिज को विस्तृत बनाना रहा है।
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