आलोचना >> मुक्तिबोध एक अवधूत कविता मुक्तिबोध एक अवधूत कविताश्रीनरेश मेहता
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कवि से आरम्भ करके उसकी कविता को देखें तो कितने विश्वसनीय नतीजे निकलते हैं, कि अरे, मुक्तिबोध इतने आत्मीय और सहज भी थे
कभी-कभी विद्रोही स्वयं विद्रोह का प्रतीक बन जाया करता है तब दोनों की प्रकृति समझने में कई असुविधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। मुक्तिबोध, विद्रोही से ज्यादा तो काव्य-विद्रोह हो गए थे इसलिए बहुत कम यह जानने की चेष्टा की गई कि मुक्तिबोध एक व्यक्ति भी है, और ऐसा व्यक्ति हमसे यह अपेक्षा करता है कि हम उसी पड़ताल उसकी कविताओं से जो प्राय: करते हैं, कभी स्वयं कवि से आरम्भ करके उसकी कविता को देखें तो कितने विश्वसनीय नतीजे निकलते हैं, कि अरे, मुक्तिबोध इतने आत्मीय और सहज भी थे। इस आत्मीय स्मरण में पड़ताल की यही प्रक्रिया काम में ली गई है।
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