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मैथलीशरण गुप्त के नाटक

मैथिलीशरण गुप्त

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :460
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13204
आईएसबीएन :9788180316814

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श्री मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा लिखित इस संग्रह के नाटक उनके समय के प्रश्नों को समझाने और उनका उत्तर खोजने के अतिरिक्त आज के नारी- विमर्श एवं दलित-विमर्श के 'चिन्तन को भी रेखांकित करते हैं

श्री मैथिलीशरण गुप्त के नाटकों का यह संग्रह क्यू साथ प्रकाशित होने के कारण ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इस अर्थ में और भी महत्वपूर्ण है कि अभी तक अप्रकाशित, निष्क्रिय-प्रतिरोध और विसर्जन, नाटकों के पहली बार प्रकाशन के कारण अधिकतर मूल्यवान है।
इसमें पाँच मौलिक और चार अनूदित कुल नौ नाटक सम्मिलित हैं। इन सभी प्रकारके नाटकों के चयन में गुप्त जी ने वैविध्य का ध्यान रखा है। इन नाटकों का मुख्य उद्‌देश्य अपने समय के महत्त्वपूर्ण और चुनौती भरे प्रश्नों का उत्तर देना रहा है। 'अनघ' नाटक अहिंसा, करुणा, लोक सेवा आदि पर आधारित है। विसर्जन में पहली बार बेगार प्रथा की खिलाफत की गयी है। यह बेगार प्रथा और शोषण के खिलाफ सशक्त नाटक है। निष्क्रिय- प्रतिरोध दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग पर केन्द्रित है जो महात्मा गाँधी द्वारा कुलियों पर किये गये अत्याचार के विरोध की याद दिलाता है।
महाकवि भास के संस्कृत नाटकों के किये गये अनुवादों में पारिवारिकता, उदारता, सत्याग्रह, लोक-सेवा, अन्तरात्मा की प्रतिध्वनि और अहिंसा आदि मूल्यों की मार्मिक अभिव्यक्ति है।
श्री मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा लिखित इस संग्रह के नाटक उनके समय के प्रश्नों को समझाने और उनका उत्तर खोजने के अतिरिक्त आज के नारी- विमर्श एवं दलित-विमर्श के 'चिन्तन को भी रेखांकित करते हैं।

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