आलोचना >> इतिहास और आलोचक दृष्टि इतिहास और आलोचक दृष्टिरामस्वरूप चतुर्वेदी
|
0 |
हिंदी साहित्य के इतिहास का कोई भी अध्ययन इस कृति के द्वारा समृद्ध और समग्रतर होगा
साहित्य जीवन की पुनर्रचना है तो आलोचना साहित्य की पुनर्रचना है। साहित्य के इतिहास को तब जीवन, साहित्य और आलोचना की गति तथा उनके आपसी रिश्तों को समझना तथा व्याख्यायित करना है। रचना से पुनर्रचना के इन स्वचेतन होते क्रमिक चरणों में वैचारिकता का संपर्क बढ़ता जाये तो यह स्वाभाविक है। इस स्थिति में कह सकते हैं कि साहित्य का इतिहास अनुभव और विचार की अंतर-क्रिया की पुनर्रचना है। और उसके लिए सबसे बड़ी समस्या और चुनोती यह है कि अपने स्वयं तो इतिहास की प्रक्रिया में अंगीकृत हो। 'इतिहास और आलोचक-दृष्टि' में हिंदी साहित्य के इतिहास का एक नये स्टार पर अनुभावन और विवेचन संभव हुआ है। पुरे अध्ययन में दो प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं। एक ओर तो ख्यात आलोचकों के वैशिष्ट्य का रूप उभरता है, और दूसरी ओर उनके द्वारा विवेचित अलग-अलग इतिहास-युगों का चित्र स्पष्टतरहोता चलता है। इतिहास और आलोचना का हिंदी साहित्य के सन्दर्भ में ऐसा संपृक्त और द्वंद्वात्मक रूप पहली बार देखने को मिलता है। कविता-यात्रा और गद्य की सत्ता के विविध रूपों के विवेचन और भाषिक सर्जनात्मक अन्वेषण के बाद समीक्षक ने अगले चरण में इतिहास-आलोचना की विशिष्ट प्रक्रिया का यह अध्ययन प्रस्तुत किया है, जिस विकास-क्रम में उसकी प्रामाणिकता प्रशस्त होती है। हिंदी साहित्य के इतिहास का कोई भी अध्ययन इस कृति के द्वारा समृद्ध और समग्रतर होगा।
|