मानव की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि सभी चेतनाओं का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप लोक-गीतों में समाहित रहता है। दरअसल ये लोकगीत हमारे वे महत्वपूर्ण दस्तावेज है जिनमें साधारण से साधारण घटना को आम लोगों ने लोक-गीतों के अन्दाज में सहजता से दर्ज किया है। अवधी, भोजपुरी, ब्रज, बुन्देली, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, मगधी आदि लोक-गीतों में राष्ट्रीय, साहित्यिक, -धार्मिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक तत्त्व अनेकानेक परतों में परम्परागत रूप से विद्यमान है। इन लोक-गीतों के पीछे जो मार्मिक अनुभूतियाँ एवं सजीवता भरी है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
भारतीय इतिहास लेखन की परम्परा में लोक एवं लोक-गीत अभी हाल तक अनुपस्थित रहे है। चाहे उपनिवेशवादी इतिहासकार हों, राष्ट्रवादी इतिहासकार हों, मार्क्सवादी इतिहासकार हों या उपाश्रयी इतिहासकार सबके लेखन से यह प्राय: अछूता ही रहा है। इधर इतिहासकारों का एक वर्ग लोक-गीतों, लोक-परम्पराओं एवं लोक-संस्कृति को अपने अध्ययन एवं लेखन का केन्द्र बना रहा है, जिससे भारतीय इतिहास के अनेक अछूते तथ्य सामने आ रहे है।
स्वाधीनता संग्राम की समग्र तस्वीर लोक-गीतों, लोक-कथाओं, लोक-मुहावरों आदि के अध्ययन के बिना नहीं तैयार की जा सकती। अवधी, भोजपुरी, मैथिली, बुन्देली, ब्रज, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी आदि लोक-गीतों में इसकी जो विभिन्न छवियाँ है इनके द्वारा स्वतन्त्रता संग्राम का एक समानान्तर इतिहास लिखा जा सकता है। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने यही प्रयत्न करते हुए लोक-गीतों के आलोक में भारतीय स्वाधीनता संग्राम को नये परिप्रेक्ष्य में समझने की सफल कोशिश की है।