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भारतीय भाषा में रामकथा

योगेन्द्र प्रताप सिंह

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :220
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13066
आईएसबीएन :9788180313998

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अयोध्या शोध संस्थान, अयोध्या, फैजाबाद की 'साक्षी' शोध पत्रिका का सद्य: प्रकाशित विशेषांक ' 'भारतीय भाषाओं में रामकथा' ' पुस्तकाकार रूप में आपके सामने है

अयोध्या शोध संस्थान, अयोध्या, फैजाबाद की 'साक्षी' शोध पत्रिका का सद्य: प्रकाशित विशेषांक ''भारतीय भाषाओं में रामकथा'' पुस्तकाकार रूप में आपके सामने है। एक शोध विशेषांक को पुस्तकाकृति का स्वरूप प्रदान करना स्वयं में सांस्कृतिक महत्व तथा भारतीय गौरव बोध की संकल्पना का प्रतीक है। राम राष्ट्रीय संस्कृति के प्रतीक पुरुष हैं। अन्तर्राष्ट्रीय मानवता के प्रतीक पुरुष राम सुमात्रा, जावा, कम्बोडिया, वर्मा, लंका, नेपाल, बोर्नियो आदि-आदि कितने देशों में स्वीकृत मानवतावादी चेतना के साक्ष्य हैं। देश की समस्त लोकभाषाओं में रामकथा 1 ०वीं शदी से व्याप्त दिखाई पड़ती है। तमिल, तेलगु, कन्नड, मलयालम, गुजराती, मराठी, सिंधी, कश्मीरी, पहाड़ी, पंजाबी, असमिया, बंगला, उड़िया, हिन्दी आदि समस्त भाषा रूपों में यह रामकथा कितनी आत्मीयतापूर्वक लोकग्राह्‌य रही है, इसकी उदाहरण यह कृति है। इस प्रकार, यह कृति राममयी भारतीय चेतना की राष्ट्रीय अस्मिता का वह साक्ष्य है, जिसके माध्यम से हम समग्र भारतीय राग- द्वेष त्यागकर महामानवतावाद के विशाल मंच पर एक साथ खड़े दिखाई पड़ते हैं और यहाँ न जाति है, न धर्म-संकीर्णता है, न राजनीतिक असहिष्णुता है और न ऊँच-नीच का भेदभाव है। समत्व एवं मानवीयता इस संस्कृति का प्राणवान तत्व है। यही भारतीय राष्ट्रीय चेतना का भी सार तत्व है। इस कृति का मुख्य लक्ष्य भारतीय राष्ट्रीय चेतना के इसी प्राणवान तत्त्व को उजागर करना है।

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