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			 आलोचना >> अन्तिम दशक की हिन्दी कविता अन्तिम दशक की हिन्दी कवितारवीन्द्रनाथ मिश्र
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अंतिम दशक की हिंदी कविता की संवेदना को समझने और जनाने के लिए हमें तत्कालीन परिवेश, विचार, भावबोध आदि की संक्षिप्त जानकारी कर लेना समीचीन होगा
अंतिम दशक की हिंदी कविता की संवेदना को समझने और जनाने के लिए हमें तत्कालीन परिवेश, विचार, भावबोध आदि की संक्षिप्त जानकारी कर लेना समीचीन होगा। 
रचनाकार परिवेश में व्याप्त दुःख दर्द, पीड़ा का अनुभव करता है और यही पीड़ा संस्कारित होकर साहित्य में अभिव्यक्ति होती है। कभी-कभी रचनाकार अपनी जीवन व्यथा को ही गाथा बनकार प्रस्तुत करता है। उसे साहित्य-सर्जन के लिए समसामयिक परिस्थितियों का ज्ञान आवश्यक होता है। संवेदनशील होने के कारण कवि की अनुभूति गहरी एवं पैनी होती है, जिससे कि उसके अन्दर भावों का उद्रेक होता है। यह उद्रेक भी कवि में विभिन्न परिस्थितियों एवं परिवेश के अंतर्गत अलग-अलग होता है और उसकी संवेदनाएँ भी अलग-अलग होती हैं। 
साहित्यकार अपने साहित्य के माध्यम से अतीत एक आधार पर वर्तमान को संवारता है और अभिश्य की दिशा का निर्धारण करता है।
			
						
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