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नाटक-एकाँकी >> आगामी आदमी आगामी आदमीप्रभात कुमार भट्टाचार्य
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आखिरकार निहित स्वार्थों के विरुद्ध कार्रवाई की बागडोर अब आम आदमी के हाथों पहुँच गई है-आगामी आदमी में
तीन काव्य-नाटकों की शृंखला का तीसरा काव्य-नाटक है-‘आगामी आदमी’। आम आदमी के संघर्ष के तीन पड़ावों में पहला है ‘काठमहल’, दूसरा है ‘प्रेत शताब्दी’ और अब यह तीसरा है ‘आगामी आदमी’-एक सांगीतिक काव्य-नाटक जिसमें ढोल ढमाकों और तरन्नुम में खोया आम आदमी, नित नये रचे गये खेलों के बहाने, अपनी नियति की त्रासदी से भागने की कोशिश में सहसा उस कोढ़ की गिरफ्त में आ जाता है, जिसे औरों में बाँटे बिना उसे अपनी पहचान नहीं मिल सकती है। क्योंकि यह कोढ़ गिरफ्त नहीं बल्कि एक हथियार है जिसके माध्यम से कारा की फौलादी दीवारों को तोड़ा जाना है। इस कोढ़ तक पहुँचते-पहुँचते तमाम राजनैतिक मतवादों का टकराव, कुछ-कुछ चमत्कार की स्थिति में सहम-सा गया है या शायद उनकी स्थिति उन्मादी टकरावों की चरम परिणति के बाद अनायास आविष्कृत चरम सत्य (?) से साक्षात्कार की अनोखी स्थिति बन गई है। आखिरकार निहित स्वार्थों के विरुद्ध कार्रवाई की बागडोर अब आम आदमी के हाथों पहुँच गई है-आगामी आदमी में।
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