गजलें और शायरी >> शेर-ओ-सुखन - भाग 5 शेर-ओ-सुखन - भाग 5अयोध्याप्रसाद गोयलीय
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प्रस्तुत है शेर-ओ-सुखन भाग 5....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नज़र आये-न-आये कोई आँसू पूँछनेवाला ।
मेरे रोने की दाद ऐ बेकसी ! दीवारों-दर देंगे।।
मेरे रोने की दाद ऐ बेकसी ! दीवारों-दर देंगे।।
शाद अज़ीमाबादी
कोई सुने न सुने इन्क़लाब की आवाज़।
पुकारने की हदों तक हम पुकार आये।।
पुकारने की हदों तक हम पुकार आये।।
अनवर साबिरी
न खींच ए चारागार ! मजरूह दिल से ख़ूँचु का नावक।
सजाया है बड़ी काविश से हमने इस गुलिस्ताँ को।।
सजाया है बड़ी काविश से हमने इस गुलिस्ताँ को।।
दिल शाहजहाँपुरी
1901 से 1954 की ग़ज़ल गोई
शायरी में परिवर्तन के कारण
उर्दू-शायरी पर अंग्रेज़ी-साहित्य का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। अंग्रेज़ी के
प्रसार से पूर्व उर्दू-शायरी का एक मात्र माध्यम फ़ारसी-शायरी था उसका
अनुकरण एवं पुराने विचारों की पुनरावृत्ति करते रहना ही तत्कालीन उर्दू
शायरों का एक मात्र लक्ष्य रह गया था।
ग़ज़लका क्षेत्र सीमित था। इस सीमित क्षेत्र में कोई कहाँ तक उड़ान भरता ? ‘ग़ालिब’ ने ग़ज़ल में पहले-पहल परिवर्तन एवं परिवर्धन किया और इसमें उन्हें बहुत अधिक सफलता प्राप्त हुई। उन्होंने अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और प्रतिभा से अनेक मौलिक विचारों का ग़ज़ल में इस कौशल से समावेश किया कि ग़ज़ल नये आबो-ताबके साथ चमकने लगी और अब वह केवल मानसिक अभिरुचि को तृप्त करने के बजाय जीवनोपयोगी भी होने लगी।
ग़ालिबकी इस सूझ-बूझ से शायरोंको एक नवीन दिशा का ज्ञान हुआ और ग़ज़ल का क्षेत्र भी पहले की अपेक्षा काफ़ी विस्तृत हुआ, किन्तु ग़ालिबकी प्रतिभाके लिए तो असीमित क्षेत्र की आवश्यकता थी। स्वयं अकेले वे कहाँ तक इस क्षेत्र को विस्तृत करते रहते ? लाचार उन्हें कहना पड़ा—
ग़ज़लका क्षेत्र सीमित था। इस सीमित क्षेत्र में कोई कहाँ तक उड़ान भरता ? ‘ग़ालिब’ ने ग़ज़ल में पहले-पहल परिवर्तन एवं परिवर्धन किया और इसमें उन्हें बहुत अधिक सफलता प्राप्त हुई। उन्होंने अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और प्रतिभा से अनेक मौलिक विचारों का ग़ज़ल में इस कौशल से समावेश किया कि ग़ज़ल नये आबो-ताबके साथ चमकने लगी और अब वह केवल मानसिक अभिरुचि को तृप्त करने के बजाय जीवनोपयोगी भी होने लगी।
ग़ालिबकी इस सूझ-बूझ से शायरोंको एक नवीन दिशा का ज्ञान हुआ और ग़ज़ल का क्षेत्र भी पहले की अपेक्षा काफ़ी विस्तृत हुआ, किन्तु ग़ालिबकी प्रतिभाके लिए तो असीमित क्षेत्र की आवश्यकता थी। स्वयं अकेले वे कहाँ तक इस क्षेत्र को विस्तृत करते रहते ? लाचार उन्हें कहना पड़ा—
कुछ और चाहिए वुसअ़त मेरे बयाँ के लिए
यही वुसअ़त (विस्तीर्णता) उर्दू-शायरी को अंग्रेज़ी-साहित्य से प्राप्त
हुई। अंग्रेज़ी कवितायें प्रेमके अतिरिक्त-राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक,
व्यावहारिक, दार्शनिक, आध्यात्मकि, प्राकृतिक, राष्ट्रीय आदि अनेक
जीवनोपयोगी एवं सामयिक विचारों से ओत-प्रोत होती थीं। विश्व की मुख्य-मुख्य
घटनाओं को बहुत सुरुचिपूर्ण ढंग से अंग्रेज़ी कविताओं द्वारा व्यक्त किया
जाता था।
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