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कोई नया समाचार

प्रेम रंजन अनिमेष

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1262
आईएसबीएन :81-263-1011-1

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प्रस्तुत है श्रेष्ठतम कविताओं का उत्कृष्ट संकलन...

Koi Naya Samachar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तुत संग्रह में कवि का मन तो सचमुच सरलतम है। बिलकुल उतना और वैसा ही निश्छल जितना हम सबके घरों में बच्चें होते हैं। धुनी, शरारती और मौजी। बच्चों के हर-हाव-भाव उनकी हर मुद्रा का सूक्ष्म पर्यवेक्षण कर उसे उतनी ही सफाई से शब्दों में पिरो देना खासा दुष्कर कार्य है। खासतौर पर एक वयस्क के लिए।

छवि

इस दुनिया की
जो छवि है मेरे भीतर
उसमें एक स्त्री के वक्ष की तरह
थामे हुए हैं इसे
नन्हें शिशु हाथ

भरोसा

दस्तक दो
तो सबसे छोटे को
दो आवाज़

भले ही वह शिशु हो
चलना नहीं जानता हो अभी

जो सबसे छोटा है उसी से
सबसे अधिक उम्मीद है
दरवाज़ों के
खुलने की..

कामना

जिस राह आऊँ
कोई न आया हो उस पर

जिस सीने से लगूँ
कोई न लगा हो

चूमें जो होंठ
किसी ने न चूमा हो उन्हें

पहली कामना
नये बच्चे की
अब यही तो नहीं हो सकता
उसकी ख़ातिर

हर एक को यहाँ आ कर
रचनी होती है अपने लिए दुनिया
नये सिरे से

सच

एक कोई आने वाला है जल्दी
खेलने वाला तुम्हारे साथ

-सफ़ेद झूठ !

अगर यह सफ़ेद झूठ
तो फिर
सच कैसा होता है भला ?
पूछती वह

साँवला !
कहता एकटक निरखता

सिरजनहार

वही खेल खिलाओगे
तो रोएगा
वही लोरी गाओगे
तो रोएगा
वही कथा सुनाओगे
रोएगा
वही जगह घुमाओगे
वही चाँद दिखाओगे
और वह रोएगा
जब तक
नया नहीं रचोगे
रोता रहेगा बच्चा....

सलीक़ा

वही रटन...
चुप करो ! चीख़ता हूँ
या रोओ भी तो
ढंग से
छोड़ो जाने दो
बच्चा है...
ले जाती बहला कर उसकी माँ

बच्चा है वह अभी नहीं जानता
आदमी की सबसे बड़ी कला
रोने का सलीक़ा !

किसके लिए

रो रहा है बच्चा
यही काम है उसका
खिलौने लेना
फिर तोड़ना
फिर रोना
टूटेगा
तो आएगा नया
बनाएगा
और बना रहेगा खिलौने वाला
इस दुनिया में
जहाँ कोई किसी के लिए नहीं रोता
रो रहा है बच्चा

खिलौने के लिए रोता
तो कब का खत्म हो चुका होता
उसका रोना

बच्चा रोता है
खिलौने वाले के लिए.....

चार चाँद

रोते हुए तुम बिलकुल अच्छे नहीं लगते

प्यार से चूम कर आँचल से पोंछ कर
आँसुओं से चमकते उस सलोने मुखड़े को
लगा लेती सीने से
लौ-सी जली हो जैसे भीतर
दिपदिपा उठतीं अकथ सुख से आँखें
जहाँ तक मैं जानता हूँ
इसी समय सृष्टि की सुन्दरता में
लगते हैं चार चाँद !

सदृश

ईश्वर है बच्चा

उतने ही
बावले लगते हम
उसे रिझाने में

और कुछ भी करते
लगा रहता
खटका

वह कहीं से
देख तो नहीं रहा.....

पाना

नहीं तो
माँ भी नहीं देती

रोने से मिलता है
कहा शिशु अधरों ने
लग कर सीने की लौ से

होने से मिलता है
दूसरी छाती ने
बताया होंठों को

पलकें मूँदे स्त्री ने
चेहरा उठाया आसमान की ओर
ढलकी एक बूँद
खोने से
मिलता है....!

साझ

यह कौन है ! तुम्हारा दूसरा आदमी ?
बच्चे में ही लगा देख उसे
कहता हूँ कट कर

नहीं तुम हो
मेरे पहले बच्चे
दुलारती वह मुझे
दूसरे हृदय से लगा कर

पहला नाम

बच्चे ने जाना
माँ
चूल्हे की आग का
दूसरा नाम है
बच्चे ने जाना
माँ त्याग का दूसरा नाम है
माँ का पहला नाम
ढूँढ़ रहा है बच्चा....

नेह युद्ध

सीने से लगाये उसे
उसके बालों में उलझाये आँखें और उँगलियाँ
यह माँ है
सींचती और सँजोती एक साथ
ओट दिये एक हाथ
दूसरे से लौ उकसाती
एक ही वक़्त
सहेजती भीतर बाहर
रचती और बचाती.....

उछाह

यह जुड़ना
अलगना
रूठना
फिर मान जाना
यही जीवन-दर्शन है
ठगा-सा
मैं देखता
माँ का
बच्चे को
उछाल-उछाल कर
खिलाना
और उसका
खिलखिलाना....

नाम

क्या करूँ
नींद में अकसर
निकल जाता
एक नाम....

परेशान होती लड़की

तुम कह दो
वह नाम मेरा है
जो तुमने सोच रखा है
मेरे लिए....

मुसकुराता सपने-सा
एक बच्चा

अगवानी

वह बुन रही है पोशाक
मैं बना रहा हूँ दुनिया

मेरे बच्चे
मैं कर रहा हूँ तुम्हारा इन्तज़ार

नन्हे दाँतों का सेट
बनवा रखा है
तुम्हारे लिए !

सतवाँसा

पहले मौसम की हवा लगेगी उसे
और कातर कर देगी पहली बौछार

जो दिखता नहीं दूसरों को
वह दृश्य विचलित कर देगा
और कोई अनसुनी चीख़
उचाट देगी नींद

सुकसुकाहा रहेगा
धूल धुआँ धूप शीत
बरदाश्त नहीं कर सकेगा तनिक
वह जो
आबोहवा की गड़बड़ी
समय की हदस
या माँ की दुर्बलता से
चला आया पहले ही

या इतनी उतावली थी
इस दुनिया को देखने
इसे बदलने की !

दूध का स्वाद

कैसा लगता है बताना
थपकाती उसे
सीने से लगाती

कुनमुनाता वह
होंठ सिकोड़

यह होगा पसीने का नमक
उतरेगा दूध अभी

फिर मना कर
कलेजे से लगाती
इस बार लग जाता

अब बोलो कैसा है
रखती उसकी ठोड़ी पर उँगली
मुसकुराता वह

फिर चूम कर उसके होठों को
जानती
अपने दूध का स्वाद !

बचाव

सो गये सब बच्चे
तो चाँद आ कर
कान में फुसफुसाया
मुझे क्यों बनाया
मामा

ताकि तुम न बनो
उनकी गुलेल का निशाना
मैंने समझाया

सम्बोधन

बच्चे के साथ-साथ
मैं भी बच्चा हो गया हूँ

उसकी माँ को
कहता हूँ माँ
अपनी माँ को दादी
कि आदत सही रहे उसकी

तब भी वह
ईश्वर और मुझे
पुकारता है ले कर नाम

एक बच्चे के पिता हो गये हो तुम
सब कहते
बनो सयाने

पिता ! पिता ! !
अपने को कहता हूँ
कि वह कुछ ग़लत न कहे

बच्चे के साथ-साथ मुझे भी बड़ा होना है !

साध

पिता होना
एक बच्चे का

उसे कन्धे पर बिठा कर

घुमाना
दिखाना
बताना
और यह सोचना
यह साधना
कि इतने ऊँचे ज़रूर हों
हमसे हमारे बच्चे !

अक्षर

क लिखो
ऐसे !

सिखलाता हूँ लिख कर
उसकी स्लेट पर

ग़लत
ऐसे लिखा जाता है भला
काट देता वह झट से

फिर आप लिखता मिटा कर

इस तरह वर्णमाला में फिर से
पहली बार रचा जाता है क !

जन्मदिन

लिख लो यह दिन कहीं
आज पहचान कर मुसकुराया
आज पहली बार पुकार कर रोया
अंकित कर लो वे सारे क्षण

जब सरका पहली बार
पलटा बैठा डग भर कर किलका

जिस दिन पकड़ना आया
और उठाना
जिस दिन भूलना सीखा
और छुपाना

पहला झूठ पहली चोट पहली गाँठ...
एक नहीं
कई जन्मदिन हैं बच्चे के !

झाँ

यही सुख है
वह देखता छुपता मुसकुराता

फिर हम भी
इस खेल में शामिल हो जाते
देखते छुपते मुसकुराते

देखते उसका छुपना
छुपते देखे जाने से
फिर मुसकुराते उसकी मुसकुराहट पर

और भूल जाते
कहीं दुख है

देखने के पीछे छुपा हुआ
छुपने के पीछे देखता हुआ

मुसकुराहटों के बीच
इस खेल में अपनी जगह ढूँढ़ता....

कोई नहीं

दरवाज़ा खटखटाया
तो एक बच्चा निकल कर आया

कोई नहीं है
घर में ?

फाटक पार से ही
झाँक कर
लड़की ने पूछा

हाँ
अगर मैं
कोई-नहीं !
उत्तर दिया उसने
फिर
क्या बनना चाहते हो ?
पूछता हूँ बच्चे से
बड़ा।
और बड़े हो कर ?
फिर...
बच्चा।
कहता खेल में लौटता

बड़प्पन

मेरी बात मानो
बड़ा मैं हूँ...
कहता बच्चे को

-लेकिन ज़िन्दगी तो
मेरी बड़ी है
कर देता वह निरुत्तर

पहुँच

ऊँची है मन्दिर की घण्टी

ऊँचा ऊँचा और ऊँचा
उछल रहा बच्चा
उस तक पहुँचने के लिए

सोचता काश थोड़ा बड़ा होता

बड़ा होता तो वह
ईश्वर की घण्टी बजा देता।

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