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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
"तुम्हारा व्वाय फ्रेंड कहता था कि तुम पूरी तरह से अपने जीजा पर आश्रित थीं
इसलिये उससे बाहर नहीं जा सकती थीं। कहीं यही बात तो तुम्हें जीजा की
ज्यादतियां बर्दाश्त करने पर मजबूर नहीं करती थीं? आश्रय को उसने तुम्हारे
खिलाफ हथियार तो नहीं बनाया हुआ था?"
"ऐसी बात तो नहीं थी।"-वो दबे स्वर में बोली।
"तो क्या बात थी?"
"अब मैं क्या कहूं?"
"कुछ तो कहो।"
“कहते शर्म आती है।"
"अरे,अपनों में क्या शर्म?"
"हम क्या किसी को कहने जायेंगे?"-अर्जुन बोला-
"बेबी, जो कहना है बेखौफ कहो।"
"वो....वो क्या है कि....मैं....मैं उनसे बहुत प्रभावित थी। जब उनकी दीदी से
कोर्टशिप चल रही थी, तब जब भी मैं उन्हें देखती थी तो मेरे मन में एक ही खयाल
आता था कि मर्द हो तो ऐसा हो। तब मिस्टर बतरा मुझे कामदेव का अवतार लगते थे।"
"इसका साफ-साफ हिन्दोस्तानी में मतलब ये हुआ कि तुम्हें भी बतरा से मुहब्बत
थी।"
“मैं मन ही मन उन्हें चाहती थी लेकिन मैंने अपने मन के भाव कभी भी उन पर
जाहिर नहीं होने दिये थे क्योंकि ये दीदी के साथ ज्यादती होती।"
"बहुत खयाल किया अपनी दीदी का।"
“हां। बहरहाल मैं अपने एकतरफा प्यार से.भी खुश थी।"
"आई सी। फिर?"
"फिर उन्होंने भावना से शादी कर ली। तब एकबारगी तो वो किस्सा मुझे हमेशा के
लिये खत्म लगा था लेकिन फिर, मार्फत भावना, जीजा जी ने ही ये पेशकश की कि मैं
उनके साथ रह सकती थी। नतीजतन मैं भी नेपियन हिल पहुंच गयी।"
“और यूं मुहब्बत की जो शमा गुल हो ही जाने वाली थी, फिर टिमटिमा उठी। नो?" ।
"यस। ऐसा हुआ तो सही लेकिन थोड़ी देर के लिये ही।"
"थोड़ी देर के लिये क्यों?" ।
"क्योंकि जल्दी ही जीजा जी का असली चेहरा सामने आने लगा। जल्दी ही वो शख्स,
जो मुझे कभी देवतास्वरूप लगता था, एक बहुत ही तंगदिल, खुन्दकी और अखलाक से
कोरा शख्स लगने लगा। जल्दी ही वो दीदी से विमुख होने लगे और उसकी नाकद्री
करने लगे।"
"इन बातों से तुम्हें क्या फर्क पड़ता था?"
“समाजी तौर से तो कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि ये मियां-बीवी के बीच का
मामला था लेकिन मेरा सपना तो छिन्न भिन्न हुआ! मेरा भरम तो टूटा!"
"यू आर राइट देयर।"
“और फिर ये दीदी के साथ तो ज्यादती थी ही न!"
"कहां ज्यादती थी? तुम्हारी दीदी ने तो टिट फार टैट करके दिखा दिया। वेवफाई
का बदला बेवफाई से देकर दिखा दिया।
बतरा ने घर के माल पर नजर रखी तो उसने घर के बाहर एक पट्ठा तलाश कर लिया।"
"पट्ठा!"
"संजीव सूरी । मैं गलत कह रहा हूं?"
"गलत तो नहीं कह रहे हो लेकिन...."
वो खामोश हो गयी।
“और घर का माल तुम। जो बात तुम लपेट कर कहने की कोशिश कर रही हो, उसे मैं दो
टूक कहता हूं। उसने इस बात को कैश किया कि तुम्हारे मन में उसके लिये जगह थी
और तुमने उसको ऐसा करने दिया।"
“एक हद तक ही। वो भी एक मजबूरी के तहत।"
“सनशाइन, जो उंगली पकड़ता है, वो देर-सबेर पाहुंचे तक भी पहुंच ही जाता है।
नो?"
उसने उत्तर न दिया।
“वो लड़का पंकज तुम्हें दिलोजान से चाहता है। उसे तुम्हारे अपने जीजा से
नाजायज ताल्लुकात बर्दाश्त नहीं हो सकते थे।
इसीलिये जब उसने वो आलिंगन-चुम्बन वाला नजारा देखा तो वो बतरा पर हाथ उठा
बैठा। कहने का मतलब ये है कि तुम्हारे ब्वाय फ्रेंड के पास बतरा का कत्ल करने
का तगड़ा उद्देश्य था। वो दारू का दीवाना है और ऐसा शख्स नशे की हालत में कुछ
भी कर सकता है।"
"कत्ल भी?" वो नेत्र फैला कर बोली।
“यकीनन कत्ल भी।"
“ओह, माई गॉड! ये सब कुछ पुलिस को सूझ गया तो उसके ..साथ तो बहुत बुरी होगी।"
"तुम्हें उससे मुहब्बत है?"
"है तो सही लेकिन उतनी नहीं जितनी कि उसे मेरे से है।
वो मेरे पर बुरी तरह से मरता है। पलक झपकते हर उस शख्स के खिलाफ हो जाता है
जो कि मेरे पर निगाह रखता हो। दीवानगी की हद तक मेरे पर फिदा है। नशे में आम
घोषणा करता रहता है कि जिसकी मौत आयी हो, वो ही मेरे पर निगाह मैली करे। उसके
ये खयालात पुलिस की जानकारी में आ गये तो वो तो पंजे झाड़ कर उसके पीछे पड़
जायेंगे। जो कि उसके साथ भारी ज्यादती होगी।
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