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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


"तुम्हारे फरिश्ते उसमें कोई खोट नहीं निकाल सकेंगे क्योंकि मेरा गवाह कोई एकाध नहीं है, मेरे वो फैन मेरे गवाह हैं जो मेरे प्रोग्राम को रेडियो से चिपक कर सुनते हैं और उनकी तादाद लाखों में है। कोई माई का लाल लाखों गवाहों को नहीं झुठला सकता।"
"देखी माईंयवे नूं।" --रमाकान्त भुनभुनाया- "यूं बढ़ बढ़ के बोल रहा है जैसे सारी माईयां देखे बैठा हो, सारे लाल देखे बैठा हो।"
"क्या कहा?" -सूरी गुस्से से बोला।
"चल ओये चल । तेरे से नहीं कहा।" "मेरी बावत तो कहा।" "कहा तो क्या मुंह, पकड़ लेगा?”
"मिस्टर! प्लीज गो।"-वो सुनील की तरफ घूमा-“यू टू।"
"जाते हैं। जाने से पहले एक आखिरी बात और कहना चाहता हं....".
"मैं कोई बात नहीं सुनना चाहता। प्लीज गो।"
"अबे, ठेके के ठीकरे, वो तेरे मतलब की, तेरे फायदे की बात है।
"क्या बात है?"
"सुखबीर चानना को जानते हो?" . .
"नहीं। कौन है वो?"
“वो वो इन्स्पेक्टर है जो बतरा के कत्ल के केस की तफ्तीश कर रहा है।"
"तो मैं क्या करूं?"
"वो खास इन्स्पेक्टर है।"
"क्या खासियत है उसमें?"
"वो भावना का शादी से पहले का यार है। खास यार। जैसे कि तुम शादी के बाद के हो।"
“मैं तो नहीं हूं यार । पहले भी कहा। वो ऐसा समझती है तो...."
“बकवास न करो और बात का मतलब समझने की कोशिश करो।"
"क्या मतलब समझने की कोशिश करूं?"
“वो भावना पर आज भी दिल रखता है इसलिये तुम्हारे खास खिलाफ हो सकता है। जब कोई ऐसा पुलिस वाला किसी के खिलाफ होता है तो स्याह को सफेद करके दिखाने से भी बाज नहीं आता।"
“वैसे भी कहा गया है कि” --रमाकान्त बोला- “जंग और प्यार में सब जायज होता है।" ।
"किसी को बलि का बकरा बनाना भी।" सुनील बोला “खास तौर से तब जबकि तुम भावना की बाबत अभी ऐसे वल्गर खयालात जाहिर करके हटे हो।" ।
“उन की"-वो घबरा गया-- “उसे....उसे....थोड़े ही खबर लगेगी!"
"क्यों नहीं लगेगी? हम क्या वो सब भूल गये जो हमने अभी सुना!"
“सब याद है हमें।"
रमाकान्त अकड़ कर बोला- “और .. जब पुलिस के सामने वो सब दोहराने का वक्त आयेगा तो एक ... की आठ लगायेंगे।"
"आप लोग ऐसा करेंगे?"
"क्यों नहीं करेंगे? जो आदमी हमारा गो वैंट गॉन करने पर .. आमादा है, हम भी तो उसका गोईंग गोईंग गोन कर सकते हैं।" .
“खुद भावना मेरी गवाह है कि मैं साढ़े आठ बजे वहां से रुखसत हो गया था।"
“जो कि इन्स्पेक्टर की पुरानी माशूक है" सुनील बोला-  “जो कि अब जानेगी कि तुम्हें उससे कोई मुहब्बत नहीं थी, कि .... तुम उसे एक पलंग समझते थे जिस पर कि तुम कभी कभार  आराम फरमा लेते थे। ये बात तो हम उसे खास तौर से बतायेंगे। कि तुमने उसे 'ईजी ले' कहा था।" ।
“उसे भी” रमाकान्त बोला-“और इन्स्पेक्टर चानना को भी।"
“न सिर्फ बतायेंगे, भड़काऊ तरीके से बतायेंगे।"-सुनील बोला।
“काका बल्ली"- रमाकान्त बोला- "तेरी खैर नहीं।"
“भावना मेरे पर जान छिड़कती है।"
सूरी बोला- “वो कभी तुम लोगों की बातों का यकीन नहीं करेगी।"
"अब जीवन जल छिड़केगी।" रमाकान्त बोला
"जीवन जल समझता है न?"

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