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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


"ऊपर मैंने एक हाल कमरा देखा था जिसका फर्श लकड़ी का था, जिसमें दो विशाल मेजें और उसके गिर्द कई कुर्सियां लगी हई थीं, वो क्या जगह है?"
“पार्टी की ही जगह थी वो।"
"वो तो तुम कहते हो कि संचिता के कमरे में थी।"
“वहीं थी लेकिन खाने पीने के लिये, उठने बैठने के लिये ठिकाना उस हाल कमरे में बनाया गया था। संचिता का बेडरूम उसके साथ ही जुड़ा हुआ है और बीच में कनैक्टिंग डोर भी है। वहां से बैड उठाकर दीवार के साथ लगा दिया गया था और उसके फर्श को यूं खाली कर दिया गया था कि वहां म्यूजिक सिस्टम बज पाता और डांस मुमकिन हो पाता।"
“आई सी। जिस वक्त कत्ल की खबर आम हुई थी, उस वक्त ऊपर सब लोग कहां थे?"
“हाल कमरे में। तभी पेट पूजा के लिये छोटा-सा ब्रेक किया गया था इसलिये सब लोग वहां जमा थे।"
"ऐसे कितने ब्रेक तब तक हो चुके थे?"
"एक भी नहीं। वो पहला था।" ।
“यानी कि उस हाल कमरे में तमाम मेहमान अभी एक ही बार इकट्ठे हुए थे?"
"हां"
"हाजिरी पूरी थी। मेजबान समेत सब थे वहां?"
"हां। सब थे। क्यों पूछ रहे हैं?" तभी रमाकान्त वापिस लौटा। उसकी सूरत बता रही थी कि अपने मिशन में वो कामयाब रहा था।
संजीव सूरी लिंक रोड की एक बहुखंडीय इमारत की पांचवीं मंजिल के एक फ्लैट में रहता था।
सुनील और रमाकान्त की मकतूल की कोठी से निकासी उतनी आसानी से नहीं हो सकी थी जितनी की कि वो कल्पना कर रहा था। उन्हें इन्स्पेक्टर के सामने पेश होना ही पड़ा था। इन्स्पेक्टर उसके नाम से वाकिफ निकला था, उसे सुनील की इस बात पर एतबार तो नहीं आया था कि वो लोग तभी वहां पहुंचे थे लेकिन ऐसे मामलों में अपने सिपाहियों की अलगर्जी से वो वाकिफ था इसलिये मेजबान संचिता से ये तसदीक करके कि वो वहां के आमंत्रित मेहमान नहीं थे और कत्ल की हाल दहाई के वक्त वो वहां नहीं थे, उसने उन्हें जाने की इजाजत दे दी थी।
रास्ते में सुनील मोबाइल के जरिये 'ब्लास्ट' के नाइट एडीटर को कत्ल की पूरी जानकारी दे चुका था ताकि वो खबर अगले रोज के अखबार में प्रकाशित हो पाती।

दोनों कार से बाहर निकले। "अपनी चुसकी तो निकालो।"-एकाएक सुनील बोला।
"प्यारयो" - रमाकान्त बोला- “वो चुसकी चुसकने के काबिल नहीं रही।"
"क्यों भला?"
"अरे, उसको उस पंकज के घोड़े का मुंह लगा हुआ है।"
"जैसे ऐसी बातों की, तुम्हें परवाह है।"
"बिल्कुल परवाह है। मालको, मैं बहुत हाइजीनिक आदमी हूं। आइस क्यूब भी उबाल के विस्की में डालता हूं।" ।
"नानसेंस।"
“और उसी लड़की को किस करता हूं जो पेनीसिलिन वाली लिपस्टिक लगाती हो।"
"क्या कहने!"
"वैसे और भी वजह है।"
"और क्या वजह है?"
"फ्लास्क खाली है। भूतनी दा दूसरे फेरे में एक ही सांस में फ्लास्क की सारी.विस्की पी गया। ढक्कन भी चाट लिया।"
"फिर फ्लास्क को उसका मुंह लगा होने का हवाला किस लिये?"
“वजह तो है न वो भी।"
“खाली फ्लास्क पर वो वजह लागू नहीं होती।"
"ओये चल नां सही।"
"अब आगे से दो फ्लास्क रखा करो जेब में। एक पंचायती .. हुक्का और दूसरी...."
“यारां नाल बहारां । मैं ऐन ऐसा ही करूंगा।" लिफ्ट पर सवार होकर दोनों पांचवीं मंजिल पर पहुंचे।
उन्होंने संजीव सूरी के फ्लैट की काल बैल बजाई।
नतीजा तीसरी बार की बजाई बैल के जवाब में प्रकट हुआ।
जिस्म पर गर्म गाउन लपेटे जो शख्स दरवाजे पर प्रकट हुआ वो कोई तीस-बत्तीस साल का था। उसके बाल बिखरे हुए थे और वो यूं आंखें मिचमिचा रहा था जैसे नींद से उठा हो।
लेकिन बाल बिखराये जा सकते थे, आंखों को जबरन मिचमिचाया जा सकता था।
“संजीव सूरी?" -सुनील बोला।
उसने सहमति में सिर हिलाया और एक दिखावटी जमहाई ली।
"मेरा नाम सुनील है। 'ब्लास्ट' का चीफ रिपोर्टर होता हूं मैं। ।
ये मेरा दोस्त रमाकान्त है।"
“क्या चाहते हो?"-वो भुनभुनाया-सा बोला।
"एक मिनट बात करना चाहते हैं।"
"आधी रात को ऐसी कौन सी बात करना चाहते हो जो...." .
“वक्त का हवाला बेकार है। क्योंकि अभी पुलिस भी यहां पहुंचती होगी।"
"पुलिस का यहां क्या काम?"।
"भीतर आने दो, बताते हैं।" ... वो दरवाजे से हटा। .
उन्होंने भीतर कदम रखा तो पाया कि वो एक छोटा-सा ड्राईंगरूम था। उसके पार एक बेडरूम था जिसका दरवाजा खुला था। डबल बैड पर एक कोई अट्ठारह उन्नीस साल का लड़का गहरी नींद में सोया पड़ा था।
“छोटा भाई है।"--संजीव सूरी बोला। "राजीव सूरी। बरायमेहरबानी ऊंचा न बोलना वरना वो जाग जायेगा।"
सुनील ने सहमति में सिर हिलाया।
"अब बोलो, क्या बात करना चाहते हो?"
"तुम भावना बतरा से वाकिफ हो?"।
"भावना बतरा ?"-उसके माथे पर बल पड़े।
"जो.गोपाल कृष्ण बतरा की बीवी है? जो नेपियन हिल पर रहती है?"
"हां, वाकिफ हूं। क्यों?", 
“आज उससे मिलने नेपियन हिल गये थे?"
"आज कब?"
"कभी भी। मसलन शाम को किसी वक्त?"
"नहीं।"
"शाम को नहीं गये थे या गये ही नहीं थे?"
"गया ही नहीं था। कौन कहता है मैं वहां गया था?" .
“मैं कहता हूं। अभी यहां पुलिस आयेगी तो वो भी कहेगी। और...."
“और क्या?"
"और दशरथ कहता है। दशरथ को जानते हो न?"
"वो बतरा का खानसामा ?"
"वही।"
"जरूर मेरी बाबत उसे गलती लगी थी।"
"पुलिस को उसकी.बात पर विश्वास है।"
"पुलिस का हवाला बार-बार किस लिये?"
"बतरा अब इस दुनिया में नहीं है।" ।
“ओह, माई गाड! क्या हुआ उसे? हार्ट अटैक हो गया? या एक्सीडेंट कर बैठा?"
“कत्ल। कत्ल हो गया।"
"ओह, माई गुड गॉड! किसने किया?"
"पता नहीं। अभी इस बाबत पुलिस,की तफ्तीश जारी है। पुलिस वहां पहुंची हुई है और"-सुनील एक क्षण ठिठका और फिर बोला-
"यहां भी बस पहुंचती ही होगी।"
"यहां किसलिये?"
"तुमने कहा तुम भावना से वाकिफ हो। ज्यादा किससे वाकिफ हो? भावना से या उसके पति से?"
वो कुछ क्षण खामोश रहा और फिर बोला--"सच पूछो तो भावना से। बतरा से मेरी कोई खास निसबत नहीं थी। वो मेरी टाइप का आदमी नहीं था।"
"साफगोई का शुक्रिया। भावना से कब से वाकिफ हो?"
“यही कोई छः महीने से।"
"कहां मिले? कैसे मिले?"
"रेडियो स्टेशन पर मुलाकात हुई थी। मैं फेमस डिस्क जाकी हूं। रेडियो पर म्यूजिक का प्रोग्राम देता हूं। रेडियो स्टेशन पर ही किसी ने मुझे उससे मिलवाया था। बाद में भी इत्तफाक से कई पार्टियों में मुलाकात हुई थी। फिर यूं ही दोस्ती हो गयी थी।"

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