रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
|
0 |
अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
"या शायद इसलिये जिद न की कि तलाक में वक्त लगता था, सालों लग जाते थे उसके
फाइनल होने में, और उसे तत्काल सेवा की जरूरत थी। लिहाजा उसने इन्सटेंट
रिजल्ट देने वाला काम किया?"
"क्या ?"
"कल। विडो भी उतनी ही आजाद होती है जितनी कि डाइवोर्सी।"
"ओह, नो।" . .
“जो आजादी तुम्हें सालों में हासिल होती, वो हासिल हो भी चुकी है।"
“सुखवीर, प्लीज़ डोंट टाक नानसेंस।"
"अब वो तुम्हें बतरा का अन्तिम संस्कार हो जाने के बाद ही प्रोपोज कर देगा या
क्रिया तक इन्तजार करेगा?"
“देखो, अगर इस वक्त एक दोस्त बोल रहा है तो जुबान को लगाम दो। एक पुलिस आफिसर
बोल रहा है तो मैं तुम्हारी बकवास सुनने के लिये मजबूर हूं। अरे, जब वो यहां
था ही नहीं तो वो कातिल कैसे हो सकता था? क्या वो अपने घर बैठे बैठे रिमोट
कन्ट्रोल से कत्ल कर सकता था? क्या वो..."
“ओके। ओके। मैंने मान ली तुम्हारी बात। अब एक आखिरी सवाल और।"
“वो भी पूछो।".
“बतरा ने आनन फानन इतनी तरक्की कैसे कर ली? एक मामूल क्राइम रिपोर्टर से वो
इतना बाहैसियत शख्स कैसे बन गया कि नेपियन हिल जैसे महंगे और एक्सक्लूसिव
इलाके में रहने लगा?"
“उसने एक सुपर हिट फिल्म की स्टोरी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग लिखे थे जिसकी एवज
में उसे एक बहुत मोटी रकम मिली थी।"
"कितनी मोटी? पांच लाख? दस लाख? पन्द्रह लाख?"
“मेरे खयाल से इससे भी ज्यादा लेकिन पन्द्रह लाख तो यकीनन ।" .
"फिल्म का नाम क्या था? कब रिलीज हुई थी? किसने वनायी थी?"
"मुझे मालूम नहीं।"
“लेकिन ये मालूम है कि यूं उसने पन्द्रह लाख रुपये से ज्यादा रकम एकमुश्त
कमाई थी?"
"हां" .
"कैसे मालूम है?"
"उसी ने बताया था।"
"बाकी बातें भी पूछी होती!"
"कोई फायदा न होता। जो बात बताने की उसकी मर्जी होती थी, वो वो बिना पूछे
बताता था, वरना कोई लाख सवाल कर ले, कुछ नहीं बताता था।"
“हूं। वैसे तुम जानती हो कि असल में उसकी अपार आमदनी का जरिया क्या बताया
जाता है?" -
"जानती हूं लेकिन मुझे उस बात पर एतवार नहीं।"
"किस बात पर? कि वो घर का भेदी था और उसी नाम का कॉलम लिखता था?"
"कि वो उस कॉलम के जरिये लोगों को ब्लैकमेल करता था।"
“हूं। फिलहाल इतना ही काफी है। मैं कल दिन में तुम से फिर मिलूंगा। गुड
नाइट।"
इन्स्पेक्टर घूमा और लम्बे डग भरता हुआ वहां से रुखसत .....हो गया।
|