रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
रमाकान्त बोला-"झूठ बोलने पर तो कौवा काटता है। तू चाहता है कि तुझे कौवा
काटे?" ..... ,
" "नहीं"
"सो देयर।" . .
"व्हेयर?"
"हेयर । एण्ड नाओ। मेरा मित्तर प्यारा ये पूछ रहा था कि क्या तू बतरा साहब को
खास नापसन्द करता था?"
"सच बताऊं?"
"अभी भी पूछ रहा है?"
"तो सच ये है कि ऐन यही बात थी। कभी पसन्द नहीं आया था ये शख्स मुझे। एक
नम्बर का हरामी था। मतलबी भी। हमेशा अपनी रोटियां सेंकने की ही फिराक में
रहता था। ऊपर से बहत स्मार्ट समझता था अपने आपको। लेडीज मैन समझता था। लेडीज
मैन, माई फुट। साला स्कर्ट चेज़र।"
"बहुत ही नफरत है तुम्हारे मन में बतरा के लिये।"
“मैं अपने जज्बात छुपा के भी रख सकता था। इतना नशे में नहीं हूं मैं...."
"हर नशे में गर्क शख्स यही कहता है।"
"क्या ?"
"कुछ नहीं। तुम अपनी कहो।"
"मैं कह रहा था मैं अपने जज्बात छपा के भी रख सकता था लेकिन जब यार सच बोलने
को कहे तो सच ही बोलना चाहिये न?"
“यार! यानी कि रमाकान्त?"
"और तुम भी! यानी कि सुनील । सुनील नाम ही बताया था न तुमने अपना?"
"हां।"
"फास्ट फूड जैसी यारी का खास केंद्रदान है ये भी मेरी तरह।"
रमाकान्त वोला- “यारी हो तो ऐसी हो नहीं तो न हो। जैसे नलका खोलते ही पानी
निकलता है, वैसे ही दिल खोलते ही यारी का दरिया बह निकलना चाहिये। नो?"
“यस।"-पकंज पूरे जोश से बोला।
"तेरी माशूक जीये। अब आगे बोल । क्यों नफरत थी तुझे बतरा से?"
"उसके अपनी बीवी से दुर्व्यवहार की वजह से।"
“बतरा" -सुनील बोला- “अपनी बीवी से बुरा व्यवहार करता था?" .
"बहुत बुरा व्यवहार करता था। अनपढ़, जाहिल लोगों की ... तरह पेश आता था।
हमेशा पंगे लेता रहता था।"
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