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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


उसने सहमति में सिर हिलाया।
सुनील ने उसे एक सिगरेट दिया, खुद भी नया सिगरेट लिया और फिर लाइटर से दोनों को सुलगाया।
"थैक्यू।" -सूरी बोला और फिर नर्वस भाव से सिगरेट के कश खींचने लगा।
"भावना से मिलने से इनकार क्यों किया?" सुनील ने पूछा-“तुमने किया या ये बात चानना अपनी तरफ से बना रहा है।”
"मैंने किया।"-वो बोला। "क्यों?"
"क्या करूं मिल के? तुम भूल रहे हो कि जिस आदमी के कल का इल्जाम मेरे सिर है, वो भावना का पति था। जैसे मेरे खिलाफ सबूत हैं, उनकी रू में मेरे कहने भर से ही उसे मेरी बेगुनाही पर यकीन थोड़े ही आ जायेगा! इन्स्पेक्टर चानना मेरे खिलाफ है और भावना का पुराना यार है, उसने भी भावना को मेरे खिलाफ कम नहीं भड़काया होगा। रही सही कसर ये बात पूरी कर देगी कि झेरी में मैं किसी औरत के साथ था।" ।
"जिसका नाम सुरभि सान्याल है। जिसने फरार होने में तुम्हारी मदद की थी।”
सूरी ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।
"कौन है वो?"
"है कोई।" -सूरी लापरवाही से बोला। "तुम्हारे रेवड़ की एक भेड़ है?"
“यही समझ लो।"
"झेरी साथ क्यों ले गये?"
"क्योंकि मेरा जी चाहा।"
“जब पुलिस तुम्हारे पास झेरी पहुंची थी, तब तो वो तुम्हारे साथ नहीं थी!"
"कैसे जाना?"
"होती तो वो भी गिरफ्तार हुई होती।"
"वो तो है।"
"अब कहां गयी वो?"
"क्या पता कहां गयी!"
“अमूमन कहां पायी जाती है? उसका कोई स्थायी पता भी तो होगा?"
"होगा तो तुम्हें क्या? तुम्हारा उससे कोई मतलब नहीं होना चाहिये। उसका इस केस से, मेरी गिरफ्तारी से, किसी बात से कोई लेना देना नहीं है।"
“तुम्हारी एक शुभचिन्तक नीचे बैठी है। क्या पता वो दूसरी भी तुम्हारे शुभ की चिन्ता करती यहां पहुंच जाये। फिर..."
“वो नहीं पहुंचेगी।"
"बड़े यकीन के साथ कह रहे हो?"
उसने जवाब देने की जगह लापरवाही से सिगरेट का कश लगाया।
"तुम्हें भावना से मिलना इसलिये कुबूल नहीं क्योंकि तुम समझते हो कि सुरभि सान्याल को लेकर भावना तुम से गिला कर सकती है।"
“यही बात है। इस वाबत उसकी हाय तौबा सुनने के लिये में जेहनी तौर से तैयार नहीं था इसलिये मिलने से मना किया। वैसे अब मुझे किसी के गिले शिकवे की परवाह बाकी नहीं रही है। भले ही तम्हीं जा के ये बात भावना से कह देना कि मेरी उसमें इतनी ही दिलचस्पी थी कि उसके पास पैसा था और वो पैसा मैं उससे खींच सकता था। उसने मजे लूटे, मैंने पैसा लूटा, हिसाब बराबर हो गया। अब मैंने क्या लेना देना है उससे!"।
"तुम्हारे ऐसे खयालात हैं तो कम से कम भावना की खातिर तो तुमने बतरा का खून नहीं किया हो सकता।"
"मैं किसी औरत की खातिर मक्खी मारने वाला नहीं हूं लेकिन कौन सुनता है मेरी!"
"बतरा के कत्ल की तुम्हारे पास कोई और वजह भी हो सकती है।"
“और क्या वजह हो सकती है?"
"वो तुम्हें भी ब्लैकमेल कर रहा हो सकता था।"
"किस बिना पर?"
"ये तो तुम बताओ!"
“कोई वजह नहीं है। मेरी जिन्दगी में इतना अंधेरा पहलू कोई नहीं है कि वो ब्लैकमेल की बुनियाद बन सकता।"
“कातिल तुम नहीं हो तो आलायकल तुम्हारे फ्लैट में से कैसे बरामद हुआ?"
“मैं खुद हैरान हूं। जाहिर है कि कोई मुझे फंसाने के लिये वो रिवॉल्वर वहां रख गया। वो रिवॉल्वर मेरे फ्लैट में से बरामद हुई, चानना इस बात को मेरे खिलाफ सब से बड़ा सबूत मान रहा । है जबकि ये अगर किसी बात का सबूत है तो मेरी बेगुनाही का।"
"वो कैसे?"
“मैं तुम्हें ऐसा अहमक लगता हूं कि कत्ल के दो दिन बाद भी वो रिवॉल्वर, जो कि मेरी मिल्कियत भी नहीं, मैं अपने पास रखे रहता?”

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