लोगों की राय

उपन्यास >> क्रान्ति कक्का की जन्म शताब्दी

क्रान्ति कक्का की जन्म शताब्दी

रवीन्द्र वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 12490
आईएसबीएन :9788126719051

Like this Hindi book 0

यह उपन्यास जिस समय में अवस्थित है, वह 1857 की डेढ़ सौवीं जयन्ती के आस-पास है। इसी समय क्रान्ति कक्का की जन्म-शताब्दी भी है। युवा कक्का झाँसी में चन्द्रशेखर आज़ाद के क्रान्ति के हेड क्वार्टर के सदस्य थे जब आज़ाद काकोरी कांड के बाद इस शहर में कुछ बरस भूमिगत रहे। शिक्षक कक्का रिटायर होकर अपने दूर के भतीजे के साथ आ गए थे। झाँसी का यह मध्यवर्गीय घर इस भूमंडलीकृत समय में मध्यवर्गीय विडम्बनाओं का केन्द्र बन जाता है: इसके एक छोर परक्रान्ति कक्का हैं जिनकी स्मृति में अपने क्रान्तिकारी दल के नौजवानों की यह शर्त है कि कौन पहले देश पर कुर्बान होगा; दूसरे छोर पर कक्का का प्यारा पोता है जिसके दिल्ली के पास स्थित पानी के कारखाने की बोतलों पर झाँसी की रानी की तस्वीर है - इस तस्वीर में घोड़े पर बैठी रानी का चेहरा अभिनेत्री रानी मुखर्जी का बिकाऊ चेहरा है। इसी नव-उदारवादी प्रपंच में कक्का का दूसरा पोता दिल्ली में ही अपनी नौकरी खो देता है क्योंकि वह जिस पुरानी कपड़े की मिल में काम करता है वह सोने के भाव बिक जाती है ताकि उस ज़मीन परमॉल खड़ा हो सके। इसी बेकार बाप का इकलौता पुत्र अमरीका पहुँचकर स्वायत्त हो जाता है। यह इस भूमंडलीकृत दौर में एक पुराने मध्यवर्गीय परिवार के टूटने का आख्यान है, जैसे कोई आज़ादी का शीराज़ा बिखर रहा हो। यहाँ इसी दौर की नव-औपनिवेशिक त्रासदी की आहें और कराहें हैं। यह भारतीय नव-उदारवाद की आभ्यंतरी कृत कथा है।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book