उपन्यास >> कढ़ी में कोयला कढ़ी में कोयलापाण्डेय बेचन शर्मा
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कलकत्ता का माले-मस्त मारवाड़ी समुदाय अर्थात् राजस्थान का गरीब, पसीने और परचून से चीकट कपड़ों वाला बनिया जो महानगरी में जाकर विकट धर्मपति हुआ। उग्रजी के इस उपन्यास का विषय है। अपनी देखी-समझी दुनिया की रगों-नसों में विश्वसनीय ढंग से उतरने की कला में माहिर उग्रजी ने यहाँ इस समुदाय की उन तमाम विकृतियों को उजागर किया है जो धन के अनायास आगमन के साथ आती हैं। निर्ममता की हद तक तटस्थ व्यंग्य के साथ खींचे गए राजमल जयपुरिया, घीसालाल और घमंडीलाल आदि के चित्र कलकत्ता के संपन्न मारवाड़ियों का बयान तो करते ही हैं, साथ ही वे हमारे समकालीन धनाढ्य वर्ग के भी आधिकारिक चित्र प्रतीत होते हैं। उग्रजी की सुगठित, तेंजवान व्यंग्य से दीप्त शैली का प्रतिनिधित्व करता उपन्यास।
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