आलोचना >> आधुनिक हिंदी कविता में बिम्बविधान आधुनिक हिंदी कविता में बिम्बविधानकेदारनाथ सिंह
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आधुनिक हिंदी कविता में बिम्बविधान
‘आधुनिक हिन्दी कविता में बिम्बविधान’ का यह नया संस्करण एक ऐसे साहित्यिक दौर में प्रकाशित हो रहा है, जब बिम्ब हिन्दी काव्यालोचन का स्वीकृत शब्द बन चुका है। परन्तु जिस समय (लगभग छठे दशक के अन्त में) यह शोधकार्य सम्पन्न हुआ था, उस समय तक हिन्दी में बिम्ब-विचार की कोई सुस्पष्ट परम्परा नहीं बन सकी थी। यह पुस्तक उस दिशा में पहले महत्त्वपूर्ण प्रयास के रूप में सामने आई थी। यहाँ पहली बार भारतीय परम्परा में बिम्ब-विचार के मूल स्रोतों को सुसंगत ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश की गई थी। शायद इन्हीं बातों के चलते, इस बीच लिखी गई बिम्ब-सम्बन्धी अनेक पुस्तकों के बावजूद, आधुनिक कविता के प्रेमी पाठकों और शोध-कर्मियों के बीच ‘आधुनिक हिन्दी कविता में बिम्बविधान’ की माँग बराबर बनी रही।
यह नया संस्करण - जो लगभग अपने मूल रूप में प्रकाशित हो रहा है - उसी माँग के दबाव का परिणाम है। बिम्ब-चिन्तन के लिए एक नई भाषा गढ़ने के साथ-साथ यहाँ पहली बार यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि आधुनिक कविता का बिम्बात्मक चरित्र किस बिन्दु पर मध्यकालीन अलंकार-विधान से अलग होता है। इस व्याख्या के क्रम में आधुनिक हिन्दी कविता के कल्पनात्मक विकास का एक सुस्पष्ट दृश्यालेख भी यहाँ पहली बार प्रस्तुत हुआ है, पाठक इसे लक्ष्य किए बिना नहीं रहेंगे। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण ‘आधुनिक हिन्दी कविता में बिम्बविधान’ आज भी जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही प्रासंगिक भी।
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