नई पुस्तकें >> झाँसी की रानी का तुलनात्मक अनुशीलन झाँसी की रानी का तुलनात्मक अनुशीलनऋचा द्विवेदी
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ऐतिहासिक घटनाओं या चरित्रों पर उपन्यास लेखन कल्पना के तत्त्वों के बिना सम्भव नहीं है लेकिन यही वह चीज़ है जो उपन्यासकार की दृष्टि और सामर्थ्य का भी पता देती है। उपन्यास मूलतः एक ललित विधा है जिसे पाठक सूचनाओं और ज्ञान के लिए नहीं मन-रंजन के लिए पढ़ता है और उससे चेतना के स्तर पर समृद्ध होता है। ऐतिहासिक उपन्यास इस स्तर पर अपने पाठक से कुछ भिन्न अपेक्षाएँ रखता है। वह उससे इतिहास को लेकर जागरूकता भी चाहता है। ऐतिहासिक उपन्यास लिखते समय लेखक सूचनाओं को अपनी कथा में कैसे पिरोता है, यही शैली उस कृति की श्रेष्ठता को तय करती है। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को लेकर संयोग से दो बड़े लेखकों द्वारा लिखे गए उपन्यास हमारे पास हैं और दोनों अपनी प्रस्तुति, अपनी शैली और ऐतिहासिक तथ्यों के प्रयोग की नितान्त भिन्न शैली अपनाते हैं।
एक को लिखा है हिन्दी के बहुपठित ऐतिहासिक उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा ने तो दूसरे को बांग्ला में जन-संघर्षों की कथाएँ लिखने वालीं महाश्वेता देवी ने जिसका हिन्दी अनुवाद भी प्रकशित है। यह पुस्तक इन दोनों उपन्यासों में इतिहास की प्रस्तुति का तुलनात्मक अध्ययन है। इस शोध का प्रस्थान-बिन्दु यह धारणा है कि एक ही ऐतिहासिक घटना से सम्बन्धित कलात्मक सच समान हो, यह जरूरी नहीं। उनमें समरूपता सम्भव है एकरूपता नहीं। यही बात इन दोनों उपन्यासों के अध्ययन से स्पष्ट होती है।
वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यास में जहाँ लालित्य प्रधान है वहीं महाश्वेता जी ने तथ्यात्मकता पर ज़ोर दिया है। वर्मा जी हमें कथा में बहाए लिये जाते हैं और महाश्वेता जी का उपन्यास हमें ऐतिहासिक तथ्यों के साथ लगातार जगाए रहता है। उसमें एक वस्तुनिष्ठता है। यह पुस्तक इन दोनों कृतियों का सांगोपांग अध्ययन है।
एक को लिखा है हिन्दी के बहुपठित ऐतिहासिक उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा ने तो दूसरे को बांग्ला में जन-संघर्षों की कथाएँ लिखने वालीं महाश्वेता देवी ने जिसका हिन्दी अनुवाद भी प्रकशित है। यह पुस्तक इन दोनों उपन्यासों में इतिहास की प्रस्तुति का तुलनात्मक अध्ययन है। इस शोध का प्रस्थान-बिन्दु यह धारणा है कि एक ही ऐतिहासिक घटना से सम्बन्धित कलात्मक सच समान हो, यह जरूरी नहीं। उनमें समरूपता सम्भव है एकरूपता नहीं। यही बात इन दोनों उपन्यासों के अध्ययन से स्पष्ट होती है।
वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यास में जहाँ लालित्य प्रधान है वहीं महाश्वेता जी ने तथ्यात्मकता पर ज़ोर दिया है। वर्मा जी हमें कथा में बहाए लिये जाते हैं और महाश्वेता जी का उपन्यास हमें ऐतिहासिक तथ्यों के साथ लगातार जगाए रहता है। उसमें एक वस्तुनिष्ठता है। यह पुस्तक इन दोनों कृतियों का सांगोपांग अध्ययन है।
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