नई पुस्तकें >> स्त्री अलक्षित स्त्री अलक्षितश्रीकान्त यादव
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भारतीय समाज में स्त्री-विमर्श किन जटिल रास्तों और मोड़ों से होकर मौजूद मुकाम तक पहुँचा है, यह किताब उसकी एक दिलचस्प झलक पेश करती है। बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध, जो एक तरफ औपनिवेशिक दास्ता से मुक्ति के लिए भारतीय समाज की तड़प का साक्षी बना था, वहीं दूसरी तरफ वर्णव्यवस्था की बेड़ियों में जकड़े दलितों और पितृसत्ता से आक्रांत स्त्रियों के बीच जारी मंथन और उत्पीड़न का भी सहयात्री बना था। इस दौर के अब लगभग भूले-बिसरे दो दर्जन स्त्री विषयक लेखों को संकलित करके युवा लेखक और शोधार्थी श्रीकांत यादव ने भारतीय इतिहास के उस महत्वपूर्ण कालखंड के एक लगभग अदृश्य पक्ष पर रोशनी डाली है। समकालीन समाज में स्त्री-चिंतन परम्परा और समकालीनता के किन दबावों को आकार ले रहा था, ‘स्त्री अलक्षित’ में संकलित लेखों से गुजरते हुए उनकी भी शिनाख्त होती है। विश्वास है कि स्त्री-विमर्श में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों, शोधार्थियों और विद्वानों के लिए यह पुस्तक अवश्य पठनीय और संग्रहणीय सिद्ध होगी।
- कृष्णमोहन
- कृष्णमोहन
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