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तेरी कुड़माई हो गई

सुनील विक्रम सिंह

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 12220
आईएसबीएन :9789386863188

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गुलेरी जी की बहुचर्चित कहानी "उसने कहा था" के प्रसिद्ध वाक्य "तेरी कुड़माई हो गई?"जहाँ पर समाप्त होती है, उसके आगे यह कहानी शुरू होती है

तेरी कुड़माई हो गई ? एक मार्मिक प्रेम कहानी है जो स्त्री विमर्श की दृष्टि से भी उत्कृष्ट है। गुलेरी जी की बहुचर्चित कहानी उसने कहा था के एक प्रसिद्ध वाक्य तेरी कुड़माई हो गई ? को कहानी शीर्षक दिया है। इस कहानी की विशेषता यह है कि गुलेरी जी की कहानी जहाँ पर समाप्त होती है, उसके आगे यह कहानी शुरू होती है। प्रेम में स्मृतियों का सुख है लेकिन स्मृतियाँ हमें बेचैन कर देती हैं। पानी में बुलबुले उठते हैं और मिट जाते हैं। मैंने जवाब दिया लेकिन उस क्षण मुझे महसूस हो रहा था कि प्रेम में स्मृतियों का सुख है लेकिन स्मृतियाँ हमें बेचैन कर देती हैं। पानी में बुलबुले उठते हैं और मिट जाते हैं। स्मृतियों के अन्तहीन बुलबुले उठते हैं और तुरन्त मिट जाते हैं। उस समय मैं अतीत के बियावान में घूम रही थी। लहना के बोल मानों कानों में गूँजे-शालू, मेरे मरने पर तुम मुझे इसी रूप में याद रखना कि अमृतसर के बाजार में एक चंचल लड़का मिला था और अक्सर पूछता था - तेरी कुड़माई हो गई ? मैंने तुझे लाख भूलाने का प्रयास किया लेकिन कुछ भूलता ही नहीं। ग्रीष्म की दुपहरी के सन्नाटे में , चाँदनी रात के खामोश सन्नाटे में, सपनों के मनोरम संसार में मेरे कानों में ये ही बोल सुनाई पड़ते हैं - तेरी कुड़माई हो गई ?

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