नई पुस्तकें >> मजहब ए मोहब्बत मजहब ए मोहब्बतमोरारि बापू
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इसीलिए महुवा हो या और कोई भी स्थान हो, बापू, मुसलिम, ख्रिस्ती, जैन, बौद्ध, सिख या यहूदी, कोई भी हो, उसे एक ही बात समझाने की प्रामाणिक प्रार्थना करते हैं कि हम सबके लिए अब तो हमारा मजहब, केवल, मजहब-ए-मोहब्बत ही है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रस्तुत पुस्तक में महुवा और अहमदाबाद में मुस्लिम समुदाय के बीच दिए गए प्रवचन हैं। पिछले 21 साल से महुवा में बापू और इसलाम के बिलग-बिलग मौलाना की सन्निधि में तकरीर होती है। उनमें से कुछ प्रवचनों को यहाँ संकलित किया है। 2009 में कैलास गुरुकुल में आदरणीय श्री दलाईलामाजी की विशेष उपस्थिति में सभी धर्मों के प्रतिनिधि आए थे और धर्म-संवाद का आयोजन हुआ था। उस समय बापू जो बोले थे, उस प्रवचन का भी समावेश किया गया है। मूल ढंग में ही इन शब्दों को रखा गया है। बादल जब बरसता है तो पूरे इलाके पर बरसता है। नदी का उद्गम स्थान भले कोई एक जगह से हो, जल सबको आप्लावित करता है।
सूर्योदय होता है किसी एक जगह से, लेकिन उसकी किरणें हर जगह फैल जाती हैं, ठीक वैसे ही, बापू भले महुवा में बोले हों, किसी एक धर्म के लोगों के बीच में बोले हों, लेकिन उनके विचार वैश्विक हैं। वैसे देखने जाएँ तो देह से तो बापू सनातनी हिंदू परंपरा के साधू हैं, लेकिन क्या पूरे विश्व को आज सत्य, प्रेम और करुणा नहीं चाहिए ? अध्यात्म में कहाँ जात-पात होती है ? हमारे मन में छिपे इन दोषों से हमें कौन मुक्त करेगा ? इसीलिए महुवा हो या और कोई भी स्थान हो, बापू, मुसलिम, ख्रिस्ती, जैन, बौद्ध, सिख या यहूदी, कोई भी हो, उसे एक ही बात समझाने की प्रामाणिक प्रार्थना करते हैं कि हम सबके लिए अब तो हमारा मजहब, केवल, मजहब-ए-मोहब्बत ही है।
सूर्योदय होता है किसी एक जगह से, लेकिन उसकी किरणें हर जगह फैल जाती हैं, ठीक वैसे ही, बापू भले महुवा में बोले हों, किसी एक धर्म के लोगों के बीच में बोले हों, लेकिन उनके विचार वैश्विक हैं। वैसे देखने जाएँ तो देह से तो बापू सनातनी हिंदू परंपरा के साधू हैं, लेकिन क्या पूरे विश्व को आज सत्य, प्रेम और करुणा नहीं चाहिए ? अध्यात्म में कहाँ जात-पात होती है ? हमारे मन में छिपे इन दोषों से हमें कौन मुक्त करेगा ? इसीलिए महुवा हो या और कोई भी स्थान हो, बापू, मुसलिम, ख्रिस्ती, जैन, बौद्ध, सिख या यहूदी, कोई भी हो, उसे एक ही बात समझाने की प्रामाणिक प्रार्थना करते हैं कि हम सबके लिए अब तो हमारा मजहब, केवल, मजहब-ए-मोहब्बत ही है।
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