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मैं हूँ भारतीय

के.के. मुहम्मद

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 12132
आईएसबीएन :9789352665549

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भारतीय पुरातत्व विभाग लम्बे समय से मार्क्सवादी विचारधारा के प्रभाव में रहा है। पुरातत्व विभाग अपनी खोजों से भारत के इतिहास की पहचान बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इस स्थिति में भारतीयता की भावना रखने वाले पुरातत्वविद् को किस प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, इस आत्मकथा में पढ़ें।

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यह पुस्तक एक पुरातत्त्वविद् की आत्मकथा है, जिन्हें अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी में पढ़ने और भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण में कार्य करने का अवसर मिला। यह पुस्तक एक प्रेरणादायी सामग्री के रूप में सामने आती है, जिसमें यह वर्णन है कि किस प्रकार उन्होंने मार्क्सवादी इतिहासकारों की संगठित ताकत का मुकाबला उनके ही गढ़ में किया, कैसे एक अकेले व्यक्ति ने साम्राज्य से भिड़ंत की।

भारतीय पुरातत्त्व विभाग किस प्रकार अपने आपको प्रस्तुत करे, इस संबंध में उनके सुझाव सामान्य जन में नई सोच पैदा करते हैं और भविष्य में इस विभाग की योजना बनानेवालों को दिशा-निर्देश देते हैं। वे इस बात पर बल देते हैं कि इस विभाग की अपार संभावनाओं को एक के बाद एक आनेवाली सरकारों ने भयंकर रूप से अनदेखा किया है।

किसी सक्रिय पुरातत्त्वविद् की पहली प्रकाशित डायरी होने के कारण यह इस विषय की बारीकियों पर रोचक अंतर्दृष्टि देती है और स्पष्ट रूप से बताती है कि एक पुरातत्त्वविद् को किस प्रकार धार्मिक तथा क्षेत्रीय पक्षपातों से ऊपर उठना चाहिए।

भारतीयता और राष्ट्रवाद का बोध जाग्रत् करनेवाली पठनीय कृति।

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