संस्कृति >> लोकगीतों में प्रकृति लोकगीतों में प्रकृतिशान्ति जैन
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मानव जीवन पर प्रकृति का गहरा प्रभाव पड़ता है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को देवता तथा धरती और नदियों को माता की संज्ञा दी गई है। प्रस्तुत लोकगीतों में जन-जीवन का प्रकृति से अभिन्न संबंध अत्यंत सजीव और सुहावना है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पर्यावरण और प्रकृति के बीच अन्योन्याश्रित संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति में भूमि, जल, वायु, अग्नि, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, सूर्य, चंद्रमा, आकाश आदि आते हैं।
डॉ. शांति जैन का ग्रंथ ‘लोकगीतों में प्रकृति’ पाठकों के समक्ष है। इसके अंतर्गत प्रकृति और पर्यावरण का संबंध बताते हुए कहा गया है कि मानव जीवन पर प्रकृति का गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारे जीवन का अस्तित्व स्वच्छ पर्यावरण पर निर्भर है और पर्यावरण हमारे जीवन के अनुकूल तभी होगा, जब धरती पर जल, अन्न, फल-फूल जैसी जीवनोपयोगी वस्तुएँ निर्बाध रूप से प्राप्त हो सकेंगी। पशु-पक्षी भी पर्यावरण के संरक्षक होते हैं। पर्यावरण हमारे जीवन का रक्षाकवच है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को देवता तथा धरती और नदियों को माता की संज्ञा दी गई है। इस विषय में लेखिका ने गागर में सागर भरने जैसा कार्य किया है।
लोकगीतों के माध्यम से प्रकृति-पर्यावरण-संरक्षण का संदेश देती पठनीय पुस्तक।
डॉ. शांति जैन का ग्रंथ ‘लोकगीतों में प्रकृति’ पाठकों के समक्ष है। इसके अंतर्गत प्रकृति और पर्यावरण का संबंध बताते हुए कहा गया है कि मानव जीवन पर प्रकृति का गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारे जीवन का अस्तित्व स्वच्छ पर्यावरण पर निर्भर है और पर्यावरण हमारे जीवन के अनुकूल तभी होगा, जब धरती पर जल, अन्न, फल-फूल जैसी जीवनोपयोगी वस्तुएँ निर्बाध रूप से प्राप्त हो सकेंगी। पशु-पक्षी भी पर्यावरण के संरक्षक होते हैं। पर्यावरण हमारे जीवन का रक्षाकवच है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को देवता तथा धरती और नदियों को माता की संज्ञा दी गई है। इस विषय में लेखिका ने गागर में सागर भरने जैसा कार्य किया है।
लोकगीतों के माध्यम से प्रकृति-पर्यावरण-संरक्षण का संदेश देती पठनीय पुस्तक।
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