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			 नाटक-एकाँकी >> लहरों के राजहंस (पेपरबैक) लहरों के राजहंस (पेपरबैक)मोहन राकेश
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      किसकी धृष्टता है यह ? कमलताल में पत्थर कौन फेंक रहा है ? 
      
      अलका : मैंने पहले भी ऐसा शब्द सुना था। यही मैं आपसे कह रही थी। रात के समय
      हंस अकारण ही नहीं बोल उठे थे। 
      
      हंसों का क्रंदन हल्की-हल्की कराहट में बदलकर धीरे-धीरे रुक जाता है। 
      
      सुंदरी : उद्यान में जाकर देख, कौन है जिसने ऐसी चेष्टा की है ! कहना मैं उसे
      अभी यहाँ बुला रही हूँ। 
      
      अलका : मैं अभी देखती हूँ। 
      
      बाई ओर के द्वार से चली जाती है। सुंदरी उसी तरह उद्विग्न चबूतरे पर बैठ जाती
      है। कुछ क्षण बाद श्यामांग बाईं ओर के द्वार से आता है। अलका पीछे-पीछे आती
      है, सिर झुकाए हुए। सुंदरी श्यामांग को देखते ही खड़ी हो जाती है। श्यामांग
      के चेहरे का भाव बहुत बदल गया है। 
      
      वह विक्षिप्त-सा नजर आता है। 
      
      सुंदरी : (आवेशपूर्वक) 
      तो तुम थे जो कमलताल में राजहंसों पर पत्थर फेंक रहे थे ! 
      
      श्यामांग : नहीं, राजहंसों पर नहीं, देवि ! 
      अलका सुंदरी के निकट आ खड़ी होती है। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव आ-जा रहे
      हैं। 
      
      सुंदरी : राजहंसों पर नहीं तो किस पर ? ताल में दिखाई देती अपनी छाया पर ? 
      छाया शब्द के उच्चारण से श्यामांग की आँखों में एक डर-सा लहरा जाता है। 
      
      श्यामांग : छाया पर !'हाँ' परंतु अपनी छाया पर नहीं। वह एक और ही छाया थी...
      बहुत डरावनी...। 
      
      सुंदरी : बनते क्यों हो ? स्पष्ट बात क्यों नहीं कहते ? (व्यंग्यपूर्वक)" 
      वह एक और ही छाया थी ! जान सकती हूँ कैसी छाया थी वह ? 
      
      श्यामांग : जाने कैसी छाया थी ! ज्यों-ज्यों अँधेरा गहरा हो रहा था, छाया
      लंबी और लंबी होती जा रही थी । 
      
      सुंदरी : मैं यह प्रलाप नहीं सुनना चाहती। तुम्हें अँधेरे में बैठकर छायाएँ
      देखने के अतिरिक्त और कोई काम नहीं था ? 
      			
						
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