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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

यों कहकर कुण्डलाने अपनी सखीको गलेसे लगाया और राजकुमारको नमस्कार करके वह दिव्य गतिसे अपने अभीष्ट स्थानको चली गयी। ऋतध्वजने भी मदालसाको अपने घोड़ेपर बिठाया और पाताललोकसे निकल जानेकी तैयारी की। यह बात दानवोंको मालूम हो गयी। उन्होंने सहसा कोलाहल मचाना आरम्भ किया—'पातालकेतु जिस कन्यारत्नको स्वर्गसे हर लाया था, उसे यह राजकुमार चुराये जाता है।' यह समाचार पाते ही परिघ, खड्ग, गदा, शूल, बाण और धनुष आदि आयुधोंसे सजी हुई दानवोंकी विशाल सेना पातालकेतुके साथ वहाँ आ पहुँची। उस समय 'खड़ा रह, खड़ा रह' कहते हुए बड़े-बड़े दानवोंने राजकुमार ऋतध्वजपर बाणों और शूलोंकी वृष्टि आरम्भ कर दी। राजकुमार भी बड़े पराक्रमी थे। उन्होंने हँसते-हँसते बाणोंका जाल- सा फैला दिया और खेल-खेलमें ही दानवोंके सब अस्त्र-शस्त्र काट गिराये। क्षणभरमें ही पाताललोककी भूमि ऋतध्वजके बाणोंसे छिन्न- भिन्न हुए खड्ग, शक्ति, ऋष्टि और सायकोंसे आच्छादित हो गयी। तदनन्तर राजकुमारने त्वाष्ट्र नामक अस्त्रका सन्धान किया और उसे दानवोंपर छोड़ दिया। उसकी प्रचण्ड ज्वालासे पातालकेतुसहित समस्त दानव दग्ध हो गये। उनकी हड्डियाँ चटख-चटखकर राख हो गयीं। जैसे कपिलमुनिकी क्रोधाग्निमें सगरपुत्र भस्म हो गये थे, उसी प्रकार ऋतध्वजकी शराग्निमें सम्पूर्ण दानव जल मरे।

इस प्रकार बड़े-बड़े दानवोंका वध करके राजकुमार फिर अपने अश्वपर सवार हुए और उस स्त्रीरत्नके साथ अपने पिताके नगरमें आये। पिताके चरणोंमें प्रणाम करके उन्होंने पातालमें जाने, कुण्डलाके दर्शन होने, मदालसाको पाने और दानवोंसे युद्ध करने आदिका सब समाचार सुना दिया। यह सब सुनकर पिताको बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने पुत्रको छातीसे लगाकर कहा-'बेटा! तुम सुपात्र और महात्मा हो। तुमने मुझे तार दिया; क्योंकि तुम्हारे द्वारा उत्तम धर्मका पालन करनेवाले मुनियोंकी भयसे रक्षा हुई है। मेरे पूर्वजोंने अपने कुलको यशसे विख्यात किया था। मैंने उस यशको फैलाया था और तुमने अनुपम पराक्रम करके उसे और भी बढ़ा दिया। पिताने जो यश, धन अथवा पराक्रम प्राप्त किया हो, उसे जो कम नहीं करता, वह पुत्र मध्यम श्रेणीका माना गया है; जो अपनी शक्तिसे पिताकी अपेक्षा भी अधिक पराक्रम दिखाये, उसे विद्वान् पुरुष श्रेष्ठ कहते हैं; किन्तु जो पिताद्वारा उपार्जित धन, वीर्य तथा यशको अपने समयमें घटा देता है, वह बुद्धिमान् पुरुषोंद्वारा अधम बताया गया है। मैंने जिस प्रकार ब्राह्मणोंकी रक्षा की थी, उसी प्रकार तुमने भी की है; परन्तु पाताललोककी यात्रा और वहाँ असुरोंका विनाश-वे सब कार्य तुमने अधिक किये हैं। अतः तुम्हारी गणना उत्तम पुरुषोंमें है। बेटा! तुम धन्य हो। तुम्हारे-जैसे अधिक गुणवान् पुत्रको पाकर मैं पुण्यवानोंके लिये भी स्पृहणीय हो रहा हूँ। जिसका पुत्र बुद्धि, दान और पराक्रममें उससे बढ़ नहीं जाता, वह मनुष्य मेरे मतमें पुत्रजनित आनन्दको नहीं प्राप्त करता। उस पुरुषको धिक्कार है, जो इस लोकमें पिताके नामपर ख्याति लाभ करता है। जो पिता अपने पुत्रके कार्यसे विख्यात होता है, उसीका जन्म सफल है। जो अपने नामसे प्रसिद्ध होता है, वह सबसे उत्तम है। जो पिता और पितामहोंके नामपर ख्यात होता है, वह मध्यम है तथा जो मातृपक्ष या माताके नामसे प्रसिद्धि प्राप्त करता है, वह अधम श्रेणीका मनुष्य है।*

* आत्मना ज्ञायते धन्यो मध्यः पितृपितामहैः।
मातृपक्षेण मात्रा च ख्यातिमेति नराधमः॥(२१।१०२)
इसलिये पुत्र! तुम धन, पराक्रम और सुखके साथ अभ्युदयशील बनो। इस गन्धर्वकन्याका तुमसे कभी वियोग न हो।'

इस प्रकार बारंबार भाँति-भाँतिके प्रिय वचन कहकर पिताने ऋतध्वजको हृदयसे लगाया और मदालसाके साथ उन्हें राजमहलमें भेज दिया। राजकुमार ऋतध्वज अपनी पत्नीके साथ पिताके नगरमें तथा उद्यान, वन एवं पर्वत- शिखरोंपर आनन्दपूर्वक विहार करते रहे। कल्याणी मदालसा प्रतिदिन प्रात:काल उठकर सास- ससुरके चरणोंमें प्रणाम करती और अपने पतिके साथ रहकर आनन्द भोगती थी।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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