गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
अर्जुनके यों कहनेपर भगवान् ने सम्पूर्ण भूमण्डलको वशमें करनेवाले महाभाग कार्तवीर्यसे कहा- 'राजन्! तुमने मेरे गूढ़ रहस्यका कथन किया है, इसलिये मैं तुमपर बहुत सन्तुष्ट हूँ। तुम कोई वर माँगो।
कार्तवीर्यने कहा- देव! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो मुझे ऐसी उत्तम ऐश्वर्यशक्ति प्रदान कीजिये, जिससे मैं प्रजाका पालन करूँ और अधर्मका भागी न बनूँ। मैं दूसरोंके मनकी बात जान लूँ और युद्धमें कोई मेरा सामना न कर सके। युद्ध करते समय मुझे एक हजार भुजाएँ प्राप्त हों; किन्तु वे इतनी हलकी हों, जिससे मेरे शरीरपर भार न पड़े। पर्वत, आकाश, जल, पृथ्वी और पातालमें मेरी अबाध गति हो। मेरा वध मेरी अपेक्षा श्रेष्ठ पुरुषके हाथसे हो। यदि कभी मैं कुमार्गमें प्रवृत्त होऊँ तो मुझे सन्मार्ग दिखानेवाला उपदेशक प्राप्त हो। मुझे श्रेष्ठ अतिथि प्राप्त हों और निरन्तर दान करते रहनेपर भी मेरा धन कभी क्षीण न हो। मेरे स्मरण करनेमात्रसे सम्पूर्ण राष्ट्रमें धनका अभाव दूर हो जाय तथा आपमें मेरी अनन्य भक्ति बनी रहे।
दत्तात्रेयजी बोले- तुमने जो-जो वरदान माँगे हैं, वे सब तुम्हें प्राप्त होंगे। तुम मेरे प्रसादसे चक्रवर्ती सम्राट होओगे।
सुमति कहते हैं- तदनन्तर दत्तात्रेयजीको प्रणाम करके अर्जुन अपने घर गया और समस्त प्रजा एवं अमात्यवर्गके लोगोंको एकत्रित करके उसने राज्याभिषेक ग्रहण किया। उसके अभिषेकके लिये गन्धर्व, श्रेष्ठ अप्सराएँ, वसिष्ठ आदि महर्षि, मेरु आदि पर्वत, गङ्गा आदि नदियाँ और समुद्र, पाकर आदि वृक्ष, इन्द्र आदि देवता, वासुकि आदि नाग, गरुड़ आदि पक्षी तथा नगर एवं जनपदके निवासी भी आये थे। श्रीदत्तात्रेयजीकी कृपासे अभिषेककी सब सामग्री अपने-आप जुट गयी थी। फिर तो ब्रह्मा आदि देवताओंने होमके लिये अग्निको प्रज्वलित किया तथा साक्षात् नारायणस्वरूप श्रीदत्तात्रेयजी एवं अन्यान्य महर्षियोंने समुद्र और नदियोंके जलसे अर्जुनका राज्याभिषेक किया। राजसिंहासनपर आसीन होते ही हैहयनरेशने अधर्मके नाश और धर्मकी रक्षाके लिये घोषणा करायी। दत्तात्रेयजीसे उत्तम ऐश्वर्य-शक्ति पाकर वे बड़े शक्तिशाली हो गये थे। राजाकी घोषणा इस प्रकार थी-'आजसे मुझको छोड़कर जो कोई भी शस्त्र ग्रहण करेगा अथवा दूसरोंकी हिंसामें प्रवृत्त होगा, वह लुटेरा समझा जायगा और मेरे हाथसे उसका वध होगा।'
ऐसी आज्ञाके जारी होनेपर उस राज्यमें महापराक्रमी नरश्रेष्ठ राजा अर्जुनको छोड़कर दूसरा कोई मनुष्य शस्त्र धारण नहीं करता था। स्वयं राजा ही गाँवों, पशुओं, खेतों एवं द्विजातियोंकी रक्षा करते थे। तपस्वियों तथा व्यापारियों के समुदायकी रक्षा भी वे स्वयं ही करते थे। लुटेरे, सर्प, अग्नि तथा शस्त्र आदिसे भयभीत मनुष्योंका तथा अन्य प्रकारकी आपत्तियोंमें मग्न हुए मानवोंका वे स्मरण करनेमात्रसे तत्काल उद्धार कर देते थे। उनके राज्यमें धनका अभाव कभी नहीं होता था। उन्होंने अनेक ऐसे यज्ञ किये, जिनके पूर्ण होनेपर ब्राह्मणोंको प्रचुर दक्षिणाएँ दी जाती थीं। उन्होंने कठोर तपस्या की और संग्रामोंमें भी महान् पराक्रम दिखाया। उनकी समृद्धि और बढ़ा हुआ सम्मान देखकर अङ्गिरा मुनिने कहा- अन्य राजालोग यज्ञ, दान, तपस्या अथवा संग्राममें पराक्रम दिखानेमें राजा कार्तवीर्यकी तुलना नहीं कर सकते। राजा अर्जुनने जिस दिन दत्तात्रेयजीसे समृद्धि प्राप्त की थी, उस दिनके आनेपर वह उनके लिये यज्ञ करता था और सारी प्रजा भी राजाको परम ऐश्वर्यकी प्राप्ति हुई देख उसी दिन एकाग्रचित्तसे दत्तात्रेयजीका यजन करती थी।'
इस प्रकार चराचरगुरु भगवान् विष्णुके स्वरूपभूत महात्मा दत्तात्रेयजीकी महिमाका वर्णन किया गया। शङ्ख, चक्र, गदा एवं शार्ङ्गधनुष धारण करनेवाले अनन्त एवं अप्रमेय भगवान् विष्णुके अनेक अवतार पुराणोंमें वर्णित हैं। जो मनुष्य उनके परम स्वरूपका चिन्तन करता है, वह सुखी होता है और संसारसे उसका शीघ्र ही उद्धार हो जाता है। वे आदि-अन्तरहित भगवान् विष्णु अधर्मके नाश और धर्मके प्रचारके लिये ही संसारकी रक्षा और पालन करते हैं। अब मैं इसी प्रकार पितृभक्त राजर्षि महात्मा अलर्कके जन्मका वृत्तान्त बतलाता हूँ; क्योंकि दत्तात्रेयजीने उन्हींको योगका उपदेश दिया था।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
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- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य