गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
पुत्रने कहा- प्रतिष्ठानपुरमें एक कौशिक नामक ब्राह्मण था। वह पूर्वजन्ममें किये हुए पापोंके कारण कोढ़के रोगसे व्याकुल रहने लगा। ऐसे घृणित रोगसे युक्त होनेपर भी उसे उसकी पत्नी देवताकी भाँति पूजती थी। वह अपने पतिके पैरोंमें तेल मलती, उसका शरीर दबाती, अपने हाथसे उसे नहलाती, कपड़े पहनाती और भोजन कराती थी; इतना ही नहीं, उसके थूक, खखार, मल-मूत्र और रक्त भी वह स्वयं ही धोकर साफ करती थी। वह एकान्तमें भी पतिकी सेवा करती और उसे मीठी वाणीसे प्रसन्न रखती थी। इस प्रकार अत्यन्त विनीत भावसे वह सदा अपने स्वामीकी पूजा किया करती तो भी अधिक क्रोधी स्वभावका होनेके कारण वह निष्ठुर प्रायः अपनी पत्नीको फटकारता ही रहता था। इतनेपर भी वह उसके पैरों पड़ती और उसे देवताके समान समझती थी। यद्यपि उसका शरीर अत्यन्त घृणाके योग्य था तो भी वह साध्वी उसे सबसे श्रेष्ठ मानती थी। कौशिकसे चला-फिरा नहीं जाता था तो भी एक दिन उसने अपनी पत्नीसे कहा-'धर्मज्ञे! उस दिन मैंने घरपर बैठे-बैठे ही सड़कपर जिस वेश्याको जाते देखा था, उसके घरमें आज मुझे ले चलो। मुझे उससे मिला दो। वही मेरे हृदयमें बसी हुई है। जबसे मैंने उसे देखा है, तबसे वह मेरे मनसे दूर नहीं होती। यदि वह आज मेरा आलिङ्गन नहीं करेगी तो कल तुम मुझे मरा हुआ देखोगी। मनुष्योंके लिये कामदेव प्रायः टेढ़ा होता है। उस वेश्याको बहुत लोग चाहते हैं और मुझमें उसके पासतक जानेकी शक्ति नहीं है; इसलिये आज मुझे बड़ा सङ्कट प्रतीत होता है।'
अपने कामातुर स्वामीका यह वचन सुनकर उत्तम कुलमें उत्पन्न हुई इस परम सौभाग्यशालिनी पतिव्रता पत्नीने अपनी कमर खूब कस ली और अधिक शुल्क लेकर पतिको कंधेपर चढ़ा लिया। फिर धीरे-धीरे वेश्याके घरकी ओर प्रस्थान किया। रात्रिका समय था, आकाश मेघोंसे आच्छन्न हो रहा था। केवल बिजलीके चमकनेसे मार्ग दिखायी दे जाता था। ऐसी बेलामें वह ब्राह्मणी अपने पतिका अभीष्ट साधन करनेके लिये राजमार्गसे जा रही थी। मार्गमें सूली थी, जिसके ऊपर चोर न होते हुए भी चोरके सन्देहसे माण्डव्य नामक ब्राह्मणको चढ़ा दिया गया था। वे दुःखसे आतुर हो रहे थे। कौशिक पत्नीके कंधेपर बैठा था, उस अन्धकारमें देख न सकनेके कारण उसने अपने पैरोंसे छूकर सूलीको हिला दिया। इससे कुपित होकर माण्डव्यने कहा-'जिसने पैरसे हिलाकर मुझे इस कष्टकी दशामें पहुंचा दिया और मुझे अत्यन्त दु:खी कर दिया, वह पापात्मा नराधम सूर्योदय होनेपर विवश हो निस्सन्देह अपने प्राणोंसे हाथ धो बैठेगा। सूर्यका दर्शन होते ही उसका विनाश हो जायगा।' इस अत्यन्त दारुण शापको सुनकर उसकी पत्नी व्यथित होकर बोली- अब सूर्यका उदय ही नहीं होगा।'*
* तस्य भार्या ततः श्रुत्वा तं शापमतिदारुणम्।
प्रोवाच व्यथिता सूर्यो नैवोदयमुपैष्यति ॥ (१६। ३१)
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य