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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

यमदूतने कहा- महाराज! ये धर्मराज और इन्द्र आपको लेनेके लिये आये हैं। यहाँसे आपको अवश्य जाना है, अतः चले चलिये। धर्मराज बोले-राजन् ! तुमने मेरी भलीभाँति उपासना की है, अतः मैं तुम्हें स्वर्गलोकमें ले चलता हूँ। इस विमानपर चढ़कर चलो, विलम्ब न करो।

राजाने कहा- धर्मराज! यहाँ नरकमें हजारों मनुष्य कष्ट भोगते हैं और मुझे लक्ष्य करके आर्त्तभावसे त्राहि-त्राहि पुकार रहे हैं, इसलिये मैं यहाँसे नहीं जाऊँगा। देवराज इन्द्र! और धर्म! यदि आप दोनों जानते हों कि मेरा पुण्य कितना है तो उसे बतानेकी कृपा करें।

धर्म बोले- महाराज! जिस प्रकार समुद्रके जलबिन्दु, आकाशके तारे, वर्षाकी धाराएँ, , गङ्गाकी बालुकाके कण तथा जलकी बूंदें आदि असंख्य हैं, उसी प्रकार तुम्हारे पुण्यकी भी कोई नियत संख्या नहीं हो सकती। आज यहाँ इन नरकमें पड़े हुए जीवोंपर कृपा करनेसे तुम्हारा पुण्य लाखोंगुना बढ़ गया। नृपश्रेष्ठ ! अपने इस पुण्यका फल भोगनेके लिये अब देवलोकमें चलो और ये पापी जीव भी नरकमें रहकर अपने कर्मोंका फल भोगें।

राजाने कहा- देवराज! यदि मेरे समीपमें आनेपर भी इन दुःखी जीवोंको कोई ऊँचा पद नहीं प्राप्त हुआ तो मनुष्य मेरे सम्पर्क में रहनेकी अभिलाषा क्यों करेंगे? अतः मेरा जो कुछ भी पुण्य है, उसके द्वारा ये यातनामें पड़े हुए पापी जीव नरकसे छुटकारा पा जायँ।

इन्द्र बोले- राजन्! इस उदारताके कारण तुमने और भी ऊँचा स्थान प्राप्त कर लिया। देखो, ये पापी जीव भी नरकसे मुक्त हो गये।

पुत्र कहता है- पिताजी! तदनन्तर राजा विपश्चित्के ऊपर फूलोंकी वर्षा होने लगी और स्वयं भगवान् विष्णु उन्हें विमानमें बिठाकर दिव्यधाममें ले गये।*

* यमपुरुष उवाच-
एष धर्मश्च शक्रश्च त्वां नेतुं समुपागतौ।
अवश्यमस्माद्गन्तव्यं तस्मात् पार्थिव गम्यताम्॥
धर्म उवाच-
नयामि त्वामहं स्वर्गं त्वया सम्यगुपासितः।
विमानमेतदारुह्य मा विलम्बस्व गम्यताम्॥
राजोवाच-
नरके मानवा धर्म पीड्यन्तेऽत्र सहस्रशः।
त्राहीति चार्ताः क्रन्दन्ति मामतो न व्रजाम्यहम्॥
यदि जानासि धर्म त्वं त्वं वा शक्र शचीपते।
मम यावत्प्रमाणं तु शुभं तद्वक्तुमर्हथः॥
धर्म उवाच-
अबिन्दवो यथाम्भोधौ यथा वा दिवि तारकाः।
यथा वा वर्षतो धारा गङ्गायां सिकता यथा ॥
असंख्येया महाराज यथा बिन्द्वादयो ह्यपाम्।
तथा तवापि पुण्यस्य संख्या नैवोपपद्यते॥
अनकुम्पामिमामद्य नारकेष्विह कुर्वतः।
तदेव शतसाहस्रं संख्यामुपगतं तव॥
तद् गच्छ त्वं नृपश्रेष्ठ तद्भोक्तुममरालयम्।
एतेऽपि पापं नरके क्षपयन्तु स्वकर्मजम्॥
राजोवाच-
कथं स्पृहां करिष्यन्ति मत्सम्पर्केषु मानवाः।
यदि मत्संनिधावेषामुत्कर्षो नोपजायते॥
तस्माद् यत् सुकृतं किञ्चिन्ममास्ति त्रिदशाधिप।
तेन मुच्यन्तु नरकात् पापिनो यातनां गताः ॥
इन्द्र उवाच-
एवमूर्खतरं स्थानं त्वयावाप्तं महीपते।
एतांश्च नरकात् पश्य विमुक्तान् पापकारिणः ॥
पुत्र उवाच-
ततोऽपतत् पुष्पवृष्टिस्तस्योपरि महीपतेः।
विमानं चाधिरोप्यैनं स्वर्लोकमनयद्धरिः॥
(अ० १५। ६६-६८, ७०-७८)

उस समय मैं तथा और भी जितने पापी जीव थे, वे सब नरकयातनासे छूटकर अपने-अपने कर्मफलके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंमें चले गये। द्विजश्रेष्ठ! इस प्रकार मैंने इन नरकोंका वर्णन किया; साथ ही पूर्वकालमें मैंने जैसा अनुभव किया था, उसके अनुसार जिस-जिस पापके कारण मनुष्य जिस- जिस योनिमें जाता है, वह सब भी बतला दिया।


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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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