गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य
पक्षी कहते हैं जैमिनिजी! महातपस्वी मार्कण्डेय मुनिने यह सब कथा सुनाकर क्रौष्टुकिजीको विदा कर दिया। उसके बाद मध्याह्नकालकी क्रिया सम्पन्न की। महामुने! हमने भी उनसे जो कुछ सुना था, वह सब आपको कह सुनाया। यह अनादिसिद्ध पुराण ब्रह्माजीने पहले मार्कण्डेय मुनिको सुनाया था। वही हमने आपसे कहा है। यह पुण्यमय, पवित्र, आयुवर्धक तथा सम्पूर्ण कामनाओंको सिद्ध करनेवाला है। जो इसका पाठ और श्रवण करते हैं, वे सब पापोंसे मुक्त हो जाते हैं। आपने प्रारम्भमें जो कई प्रश्न किये थे, उसके उत्तरमें हमने पिता-पुत्र-संवाद, ब्रह्माजीके द्वारा रची हुई सृष्टि, मनुओंकी उत्पत्ति तथा राजाओंके चरित्र सुनाये हैं। यह सब बात तो हम बता चुके। अब आप और क्या सुनना चाहते हैं ? जो मनुष्य इन सब प्रसङ्गोंका श्रवण तथा जनसमुदायमें पाठ करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर ब्रह्ममें लीन हो जाता है। पितामह ब्रह्माजीने जो अठारह पुराण कहे हैं, उनमें इस विख्यात मार्कण्डेयपुराणको सातवाँ पुराण समझना चाहिये। पहला ब्रह्मपुराण, दूसरा पद्मपुराण, तीसरा विष्णुपुराण, चौथा शिवपुराण, पाँचवाँ श्रीमद्भागवतपुराण, छठा नारदीय पुराण, सातवाँ मार्कण्डेयपुराण, आठवाँ अग्निपुराण, नवाँ भविष्यपुराण, दसवाँ ब्रह्मवैवर्तपुराण, ग्यारहवाँ नृसिंहपुराण, बारहवाँ वाराहपुराण, तेरहवाँ स्कन्दपुराण, चौदहवाँ वामनपुराण, पंद्रहवाँ कूर्मपुराण, सोलहवाँ मत्स्यपुराण, सत्रहवाँ गरुडपुराण और अठारहवाँ ब्रह्माण्डपुराण माना गया है। जो प्रतिदिन अठारह पुराणोंका नाम लेता तथा प्रतिदिन तीनों समय उनका जप करता है, उसे अश्वमेध-यज्ञका फल मिलता है। मार्कण्डेयपुराण चार प्रश्नोंसे युक्त है। इसके श्रवणसे सौ करोड़ कल्पोंके किये हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। ब्रह्महत्या आदि पाप तथा अन्य अशुभ इसके श्रवणसे उसी प्रकार नष्ट होते हैं, जैसे हवाका झोंका लगनेसे रूई उड़ जाती है। इसके श्रवणसे पुष्करतीर्थमें स्नान करनेका पुण्य प्राप्त होता है।*
* ब्राह्मं पाद्म वैष्णवं च शैवं भागवतं तथा।
तथान्यन्नारदीयं च मार्कण्डेयं च सप्तमम्॥
आग्नेयमष्टमं प्रोक्तं भविष्यं नवमं स्मृतम्।
दशमं ब्रह्मवैवर्तं नृसिहैकादशं तथा ॥
वाराहं द्वादशं प्रोक्तं स्कान्दमत्र त्रयोदशम्।
चतुर्दशं वामनकं कौम पञ्चदशं तथा॥
मात्स्यं च गारुडं चैव ब्रह्माण्डं च ततः परम्।
अष्टादशपुराणानां नामधेयानि यः पठेत् ॥
त्रिसन्ध्यं जपते नित्यं सोऽश्वमेधफलं लभेत्।
चतुःप्रश्नसमोपेतं पुराणं मार्कण्डसंज्ञकम्॥ ॥
श्रुतेन नश्यते पापं कल्पकोटिशतैः कृतम्।
ब्रह्महत्यादिपापानि तथान्यान्यशुभानि च॥
तानि सर्वाणि नश्यन्ति तूलं वाताहतं यथा।
पुष्करस्नानजं पुण्यं श्रवणादस्य जायते॥
(१३७। ८-१४)
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य