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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

नरिष्यन्तके दम नामक पुत्र हुआ, जो दुष्ट शत्रुओंका दमन करनेवाला था। उसमें इन्द्रके समान बल और मुनियोंके समान दया एवं शील था। बभ्रुकी कन्या इन्द्रसेना नरिष्यन्तकी पत्नी थी। उसीके गर्भसे दमका जन्म हुआ था। उस महायशस्वी पुत्रने नौ वर्षोंतक माताके गर्भमें रहकर उसके द्वारा दमका पालन कराया, तथा स्वयं भी दमनशील था। इसीलिये त्रिकालवेत्ता पुरोहितने उसका नाम 'दम' रखा। राजकुमार दमने दैत्यराज वृषपर्वासे सम्पूर्ण धनुर्वेदकी शिक्षा पायी। तपोवननिवासी दैत्यराज दुन्दुभिसे सम्पूर्ण अस्त्र प्राप्त किये। महर्षि शक्तिसे वेदों तथा समस्त वेदाङ्गोंका अध्ययन किया और राजर्षि आर्टिषेणसे योगविद्या प्राप्त की। वे सुन्दर रूपवान्, महात्मा, अस्त्रविद्याके ज्ञाता और महान् बलवान् थे; अतः राजकुमारी सुमनाने पिताद्वारा आयोजित स्वयंवरमें उन्हें अपना पति चुन लिया। वह दशार्ण देशके बलवान् राजा चारुवर्माकी पुत्री थी। उसकी प्राप्तिके लिये वहाँ जितने राजा आये थे, सब देखते ही रह गये और उसने दमका वरण कर लिया। मद्रराजकुमार महानन्द, जो बड़ा बलवान् और पराक्रमी था, सुमनाके प्रति अनुरक्त हो गया था; इसी प्रकार विदर्भ देशके राजा संक्रन्दनका राजकुमार वपुष्मान् तथा उदारबुद्धि महाधनु भी सुमनाकी ओर आकृष्ट थे। उन सबने देखा, सुमनाने दुष्ट शत्रुओंका दमन करनेवाले दमका वरण कर लिया; तब कामसे मोहित होकर आपसमें सलाह की-'हमलोग इस सुन्दरी कन्याको बलपूर्वक पकड़कर घर ले चलें। वहाँ यह स्वयंवरकी विधिसे हममेंसे जिसको वरण करेगी, उसीकी पत्नी होगी।

ऐसा निश्चय करके उन तीनों राजकुमारोंने दमके पास खड़ी हुई उस सुन्दरी कन्याको पकड़ लिया। उस समय जो राजा दमके पक्षमें थे, उन्होंने बड़ा कोलाहल मचाया। कुछ लोग कुपित होकर रह गये और कुछ लोग मध्यस्थ बन गये। इस घटनासे दमके चित्तमें तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उन्होंने चारों ओर खड़े हुए राजाओंको देखकर कहा-'भूपालगण! स्वयंवरकी धार्मिक कार्योंमें गणना है, किन्तु वह वास्तवमें अधर्म है या धर्म? इस कन्याको इन लोगोंने जो बलपूर्वक पकड़ लिया है-यह उचित है या अनुचित? यदि स्वयंवर अधर्म है, तब तो मुझे इससे कोई मतलब नहीं है; यह भले ही दूसरेकी पत्नी हो जाय। किन्तु यदि वह धर्म है, तब तो यह मेरी पत्नी हो चुकी; उस दशामें इन प्राणोंको धारण करके क्या होगा, जो शत्रुकी उपेक्षा करके बचाये जाते हैं।' तब दशार्णनरेश चारुवर्माने कोलाहल शान्त कराकर सभासदोंसे पूछा-'राजाओ! दमने जो यह धर्म और अधर्मसे सम्बन्ध रखनेवाली बात पूछी है, इसका उत्तर आपलोग दें, जिससे इनके और मेरे धर्मका लोप न हो।

तब कुछ राजाओंने कहा-'परस्पर अनुराग होनेपर गान्धर्व-विवाहका विधान है। परन्तु यह क्षत्रियोंके लिये ही विहित है; वैश्य, शूद्र और ब्राह्मणोंके लिये नहीं। दमका वरण कर लेनेसे आपकी इस कन्याका गान्धर्व-विवाह सम्पन्न हो गया। इस प्रकार धर्मकी दृष्टिसे आपकी पुत्री दमकी पत्नी हो चुकी। जो मोहवश इसके विपरीत आचरण करता है, वह कामासक्त है।' यह सुनकर दमके नेत्र क्रोधसे लाल हो गये। उन्होंने धनुषको चढ़ाया और यह वचन कहा- 'यदि मेरी पत्नी मेरे देखते-देखते बलवान् राजाओंके द्वारा हर ली जाय तो मुझ-जैसे नपुंसकके उत्तम कुलसे तथा इन दोनों भुजाओंसे क्या लाभ हुआ। उस दशामें तो मेरे अस्त्रोंको, शौर्यको, बाणोंको, धनुषको तथा महात्मा मरुत्तके कुलमें प्राप्त हुए जन्मको भी धिक्कार है।' यों कहकर दमने महानन्द आदि समस्त शत्रुओंसे कहा-'भूपालो! यह बाला अत्यन्त सुन्दरी और कुलीन है। यह जिसकी पत्नी नहीं हुई, उसका जन्म लेना व्यर्थ है-यह विचारकर तुमलोग युद्ध में इस प्रकार यत्न करो, जिससे युद्ध में मुझे परास्त करके इसे अपनी पत्नी बना सको।'

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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