गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
देवता बोले-राजकुमार! जिसका तुमने अभी उद्धार किया है, इसी कन्याके गर्भसे तुम्हें महाबली चक्रवर्ती पुत्रकी प्राप्ति होगी।
राजकुमारने कहा-देवगण! राजाओंसे परास्त होनेपर मैंने विवाहका विचार छोड़ दिया था, किन्तु पिताद्वारा सत्यके बन्धनमें बाँधे जानेपर मैं अब पुत्रकी अभिलाषा करता हूँ। पहले राजा विशालकी कन्याको मैंने त्याग दिया था, किन्तु उसने मेरे ही लिये दूसरे किसी पुरुषको पति बनानेका विचार छोड़ रखा है। अतः उस त्यागमयी देवीको छोड़कर क्रूरहृदय हो मैं दूसरी स्त्रीको कैसे अपनी पत्नी बना सकूँगा?
देवता बोले-यही राजा विशालकी कन्या और तुम्हारी भार्या है, जिसकी तुम सदा प्रशंसा करते हो। यह सुन्दरी तुम्हारे लिये ही तप करती रही है। इसके गर्भसे तुम्हारे चक्रवर्ती एवं वीर पुत्र उत्पन्न होगा। वह सातों द्वीपोंका शासक तथा सहस्रों यज्ञोंका अनुष्ठान करनेवाला होगा।
करन्धम-कुमार अवीक्षितसे यों कहकर समस्त देवता वहाँसे चले गये। तब उन्होंने उस स्त्रीसे कहा- भीरु! कहो तो यह क्या बात है! तब वैशालिनीने अपना वृत्तान्त सुनाना आरम्भ किया- 'नाथ! आपने जब मुझे त्याग दिया तो इस जीवनसे वैराग्य हो गया और मैं बन्धु-बान्धवोंको छोड़कर वनमें चली आयी। वीर! यहाँ तपस्या करते-करते मैंने अपना शरीर सुखा दिया और तब इसे त्याग देनेको उद्यत हो गयी। इसी समय देवताओंके दूतने आकर मुझे रोका और कहा- 'तुम्हें महाबलवान् चक्रवर्ती पुत्र प्राप्त होगा, जो देवताओंको तृप्त करेगा और असुरोंका संहार करेगा।' इस प्रकार देवदूतने जब देवताओंकी आज्ञा सुनायी, तब आपके समागमकी आशासे मैंने इस देहका त्याग नहीं किया।'
मार्कण्डेयजी कहते हैं-वैशालिनीके ये वचन सुनकर तथा किमिच्छक व्रतमें की हुई प्रतिज्ञाके समय पिताके कहे हुए उत्तम वचनोंका स्मरण करके अवीक्षितने उस कन्यासे प्रेमपूर्वक कहा- 'देवि! उस समय शत्रुओंसे पराजित होनेके कारण मैंने तुम्हारा त्याग किया था और अब फिर शत्रुओंको जीतकर ही तुम्हें पाया है। अब बताओ, क्या करूँ?' इसी अवसरपर मय नामक गन्धर्व श्रेष्ठ अप्सराओं तथा अन्य गन्धर्वोके साथ वहाँ आया।
गन्धर्व बोला-राजकुमार! यह कन्या वास्तवमें मेरी पुत्री भामिनी है। महर्षि अगस्त्यके शापसे यह राजा विशालकी पुत्री हुई थी। बचपनमें खेलते समय इसने अगस्त्य मुनिको कुपित कर दिया था। तब उन्होंने शाप देते हुए कहा-'जा, तू मनुष्य-योनिमें उत्पन्न होगी।' तब हमलोगोंने मुनिको प्रसन्न करते हुए कहा-'ब्रह्मर्षे! अभी यह निरी बालिका है, इसे भले-बुरेका विवेक नहीं है, तभी इसके द्वारा आपका अपराध बन गया है। अतः इसके ऊपर कृपा कीजिये।' तब उन महामुनिने कहा-'बालिका समझकर ही मैंने इसे बहुत थोड़ा शाप दिया है। अब यह टल नहीं सकता।' यही महर्षिका शाप था, जिससे यह मेरी पुत्री भामिनी राजा विशालके भवनमें उत्पन्न हुई इसके लिये ही मैं यहाँ उपस्थित हुआ हूँ। आप मेरी इस कन्याको ग्रहण कीजिये। इससे आपको चक्रवर्ती पुत्रकी प्राप्ति होगी।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य