गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
|
3 पाठकों को प्रिय 317 पाठक हैं |
अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
इस प्रकार पत्नीके उत्साहित करनेपर राजा करन्धमने पुत्रके शत्रुओंका वध करनेके लिये सेनाको तैयार होनेकी आज्ञा दी। तदनन्तर उनका विशाल और उनके साथियोंके साथ घोर युद्ध हुआ। तीन दिनतक युद्ध होनेके पश्चात् विशाल और उनके सहायक राजाओंका मण्डल जब प्रायः पराजित हो गये, तब राजा विशाल हाथमें अर्घ्य लेकर महाराज करन्धमके पास आये। उन्होंने बड़े प्रेमसे करन्धमका पूजन किया। उनका पुत्र अवीक्षित बन्धनसे मुक्त कर दिया गया। राजाने एक रात वहाँ बड़े सुखसे व्यतीत की। दूसरे दिन राजा विशाल अपनी कन्याको साथ लेकर महाराज करन्धमके पास उपस्थित हुए। उस समय अवीक्षितने अपने पिताके सामने ही कहा-'मैं इसको तथा दूसरी किसी युवतीको भी अब नहीं ग्रहण करूँगा, क्योंकि इसके देखते-देखते शत्रुओंद्वारा युद्ध में परास्त हो गया। अब आप किसी औरके साथ इसका विवाह कर दें अथवा यह उस पुरुषका वरण करे, जिसका यश और पराक्रम अखण्डित हो तथा जिसे शत्रुओंके हाथसे अपमानित न होना पड़ा हो। पुरुष सबल होनेके कारण स्वतन्त्र होता है और स्त्रियाँ अबला होनेके कारण सदा परतन्त्र रहती हैं। परन्तु जहाँ पुरुष भी दूसरेके परतन्त्र हो गया, वहाँ उसमें मनुष्यता ही क्या रह गयी। जब इसके सामने ही राजाओंने मुझे पृथ्वीपर गिरा दिया, तब अब मैं इसे अपना मुँह कैसे दिखाऊँगा?' अवीक्षितके ऐसा कहनेपर राजा विशालने अपनी पुत्रीसे कहा-'बेटी! इन महात्माकी बात तुमने सुनी है न? शुभे! जिसमें तुम्हारी रुचि हो, ऐसे किसी दूसरे पुरुषको पतिरूपमें वरण करो अथवा हम जिसे तुम्हें दे दें, उसीका तुम आदर करो।'
कन्या बोली-पिताजी! यद्यपि संग्राममें इनके यश और पराक्रमकी हानि हुई है, तथापि ये उसमें धर्मानुकूल बर्ताव करते रहे हैं। ये अकेले थे तो भी बहुतोंने मिलकर इन्हें परास्त किया है। अतः वास्तवमें इनकी पराजय हुई, यह कहना ठीक नहीं है। युद्धके लिये जब बहुत-से राजा आये, तब ये उनमें सिंहकी भाँति अकेले घुस गये और निरन्तर डटकर सामना करते रहे। इससे इनका महान् शौर्य प्रकट हुआ है। ये वीरता और पराक्रमसे युक्त होकर धर्मयुद्ध में संलग्न थे। ऐसे समयमें समस्त राजाओंने मिलकर इनपर अधर्मपूर्वक विजय पायी है। अत: इसमें इनके लिये लज्जाकी कौन-सी बात है। तात! मैं इनके रूप मात्रपर लुभा गयी हूँ, ऐसी बात नहीं है, इनकी वीरता, पराक्रम और धीरता आदि सद्गुण मेरे चित्तको चुराये लेते हैं। अतः अब अधिक कहनेकी क्या आवश्यकता है। आप मेरे लिये महाराजसे इन्हीं महानुभावकी याचना कीजिये। इनके सिवा दूसरा कोई पुरुष मेरा पति नहीं हो सकता।
विशालने कहा-राजकुमार! मेरी पुत्रीने बहुत अच्छी बातें कही हैं। इसमें सन्देह नहीं कि तुम्हारे-जैसा वीर कुमार इस भूतलपर दूसरा कोई नहीं है। तुम्हारे शौर्यकी कहीं समता नहीं है। तुम्हारा पराक्रम अनन्त है। वीर! तुम मेरी कन्याका पाणिग्रहण करके मेरे कुलको पवित्र करो।
तब महाराज करन्धमने अपने पुत्रको समझाते हुए कहा-'बेटा! तुम राजा विशालकी कन्याको स्वीकार करो। इस सुन्दरीका तुम्हारे प्रति अत्यन्त दृढ़ अनुराग है।'
राजकुमारने कहा-पिताजी ! मैंने पहले कभी आपकी आज्ञाका उल्लङ्घन नहीं किया है; अतः ऐसी आज्ञा दीजिये, जिसका मैं पालन कर सकूँ।
|
- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य