गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
जैमिनिने पूछा- श्रेष्ठ पक्षियो! प्राणियोंकी उत्पत्ति और लय कहाँ होते हैं? इस विषयमें मुझे सन्देह है। मेरे प्रश्नके अनुसार आपलोग इसका समाधान करें। जीव कैसे जन्म लेता है? कैसे मरता है? और किस प्रकार गर्भमें पीड़ा सहकर माताके उदरमें निवास करता है? फिर गर्भसे बाहर निकलनेपर वह किस प्रकार बुद्धिको प्राप्त होता है? और मृत्युकालमें किस तरह चैतन्यस्वरूपके द्वारा शरीरसे विलग होता है। सभी प्राणी मृत्युके पश्चात् पुण्य और पाप दोनोंका फल भोगते हैं; किन्तु वे पुण्य और पाप किस प्रकार अपना फल देते हैं? ये सारी बातें मुझे बताइये, जिससे मेरा सब सन्देह दूर हो जाय।
पक्षी बोले- महर्षे! आपने हमलोगोंपर बहुत बड़े प्रश्नका भार रख दिया। इसकी कहीं तुलना नहीं है। महाभाग! इस विषयमें एक प्राचीन वृत्तान्त सुनिये। पूर्वकालमें एक परम बुद्धिमान् भृगुवंशी ब्राह्मण थे। उनके सुमति नामका एक पुत्र था। वह बड़ा ही शान्त और जड़रूपमें रहनेवाला था। उपनयन-संस्कार हो जानेके बाद उस बालकसे उसके पिताने कहा- 'सुमते! तुम सभी वेदोंको क्रमशः आद्योपान्त पढ़ो, गुरुकी सेवामें लगे रहो और भिक्षाके अन्नका भोजन किया करो। इस प्रकार ब्रह्मचर्यकी अवधि पूरी करके गृहस्थाश्रममें प्रवेश करो और वहाँ उत्तम-उत्तम यज्ञोंका अनुष्ठान करके अपने मनके अनुरूप सन्तान उत्पन्न करो। तदनन्तर वनकी शरण लो और वानप्रस्थके नियमोंका पालन करनेके पश्चात् परिग्रहरहित, सर्वस्वत्यागी संन्यासी हो जाओ। ऐसा करनेसे तुम्हें उस ब्रह्मकी प्राप्ति होगी, जहाँ जाकर तुम शोकसे मुक्त हो जाओगे।'
इस प्रकार अनेकों बार कहनेपर भी सुमति जड़ होनेके कारण कुछ भी नहीं बोलता था। पिता भी स्नेहवश बारंबार अनेक प्रकारसे ये बातें उसके सामने रखते थे। उन्होंने पुत्रप्रेमके कारण मीठी वाणीमें अनेक बार उसे लोभ दिखाया। इस प्रकार उनके बार-बार कहनेपर एक दिन सुमतिने हँसकर कहा-'पिताजी ! आज आप जो उपदेश दे रहे हैं, उसका मैंने बहुत बार अभ्यास किया है। इसी प्रकार दूसरे- दूसरे शास्त्रों और भाँति-भाँतिकी शिल्पकलाओंका भी सेवन किया है। इस समय मुझे अपने दस हजारसे भी अधिक जन्म स्मरण हो आये हैं। खेद, सन्तोष, क्षय, वृद्धि और उदयका भी मैंने बहुत अनुभव किया है। शत्रु, मित्र और पत्नीके संयोग-वियोग भी मुझे देखनेको मिले हैं। अनेक प्रकारके माता-पिताके भी दर्शन हुए हैं। मैंने हजारों बार सुख और दुःख भोगे हैं। कितनी ही स्त्रियों के विष्ठा और मूत्रसे भरे हुए गर्भ में निवास किया है। सहस्रों प्रकारके रोगोंकी भयानक पीड़ाएँ सहन की हैं। गर्भावस्थामें मैंने जो अनेकों प्रकारके दुःख भोगे हैं, बचपन, जवानी और बुढ़ापेमें भी जो क्लेश सहन किये हैं, वे सब मुझे याद आ रहे हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रोंकी योनियोंमें, फिर पशु, मृग, कीट और पक्षियोंकी योनियोंमें तथा राजसेवकों एवं युद्धमें पराक्रम दिखानेवाले राजाओंके घरोंमें भी मेरे कई बार जन्म हो चुके हैं। इसी तरह अबकी बार आपके घरमें भी मैंने जन्म लिया है। मैं बहुत बार मनुष्योंका भृत्य, दास, स्वामी, ईश्वर और दरिद्र रह चुका हूँ। दूसरोंने मुझे और मैंने दूसरोंको अनेक बार दान दिये हैं। पिता, माता, सुहृद्, भाई और स्त्री इत्यादिके कारण कई बार संतुष्ट हुआ हूँ और कई बार दीन हो-होकर रोते हुए मुझे आँसुओंसे मुँह धोना पड़ा है।
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- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
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- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
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- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
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- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
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- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
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- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
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- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
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- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
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- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
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- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य