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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

राजा बोले-कल्याणी! मेरा अभ्युदय कैसे हुआ। तुम मेरा अभिनन्दन क्यों करती हो? जब हजार-हजार दुःख प्राप्त हो रहे हैं, उस समय किसीको बधाई देना क्या उचित माना जाता है ? मैं अकेला ही तो दस हजार वर्षोंतक जीवित रहूँगा। मेरे साथ तुम तो नहीं रहोगी। क्या तुम्हारे मरनेपर मुझे दुःख नहीं होगा? पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, इष्ट बन्धु-बान्धव, भक्त, सेवक तथा मित्रवर्ग- वे सब मेरी आँखोंके सामने मरेंगे। उस समय मुझे अपार दुःखका सामना करना पड़ेगा। जिन लोगोंने अत्यन्त दुर्बल होकर शरीरकी नाड़ियाँ सुखा-सुखाकर मेरे लिये तपस्या की, वे सब तो मरेंगे और मैं भोग भोगते हुए जीवित रहूँगा। ऐसी दशामें क्या मैं धिक्कार देनेयोग्य नहीं हूँ ? सुन्दरी! इस प्रकार मुझपर यह आपत्ति आ गयी। मेरा अभ्युदय नहीं हुआ है। क्या तुम इस बातको नहीं समझती? फिर क्यों मेरा अभिनन्दन कर रही हो।

मानिनी बोली-महाराज! आप जो कहते हैं, वह सब ठीक है। मैंने तथा पुरवासियोंने आपके प्रेमवश इस दोषकी ओर नहीं देखा है। नरनाथ! ऐसी अवस्थामें क्या करना चाहिये, यह आप ही सोचें, क्योंकि भगवान् सूर्यने प्रसन्न होकर जो कुछ कहा है, वह अन्यथा नहीं हो सकता।

राजाने कहा-देवि! पुरवासियों और सेवकोंने प्रेमवश मेरे साथ जो उपकार किया है, उसका बदला चुकाये बिना मैं किस प्रकार भोग भोगूंगा। यदि भगवान् सूर्यकी ऐसी कृपा हो कि समस्त प्रजा, भृत्यवर्ग, तुम, अपने पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र और मित्र भी जीवित रह सकें तो मैं राज्यसिंहासनपर बैठकर प्रसन्नतापूर्वक भोगोंका उपभोग कर सकूँगा। यदि वे ऐसी कृपा नहीं करेंगे तो मैं उसी कामरूप पर्वतपर निराहार रहकर तबतक तपस्या करूँगा, जबतक कि इस जीवनका अन्त न हो जाय।

राजाके यों कहनेपर रानी मानिनीने कहा-'ऐसा ही हो।' फिर वह भी महाराजके साथ कामरूप पर्वतपर चली गयी। वहाँ पहुँचकर राजाने पत्नीके साथ सूर्यमन्दिरमें जाकर सेवापरायण हो भगवान् भानुकी आराधना आरम्भ की। दोनों दम्पति उपवास करते-करते दुर्बल हो गये। सर्दी, गर्मी और वायुका कष्ट सहन करते हुए दोनोंने घोर तपस्या की। सूर्यकी पूजा और भारी तपस्या करते-करते जब एक वर्षसे अधिक समय व्यतीत हो गया, तब भगवान् भास्कर प्रसन्न हुए। उन्होंने राजाको समस्त सेवकों, पुरवासियों और पुत्रों आदिके लिये इच्छानुसार वरदान दिया। वर पाकर राजा अपने नगरको लौट आये और धर्मपूर्वक प्रजाका पालन करते हुए बड़ी प्रसन्नताके साथ राज्य करने लगे। धर्मज्ञ राजाने बहुत-से यज्ञ किये और दिन-रात खुले हाथ दान किया। वे अपने पुत्र, पौत्र और भृत्य आदिके साथ यौवनको स्थिर रखते हुए दस हजार वर्षांतक जीवित रहे। उनका यह चरित्र देखकर भृगुवंशी प्रमतिने विस्मित होकर यह गाथा गायी-'अहो! भगवान् सूर्यके भजनकी कैसी शक्ति है, जिससे राजा राज्यवर्द्धन अपने तथा स्वजनोंके लिये आयुवर्द्धन बन गये।'

जो मनुष्य ब्राह्मणोंके मुखसे भगवान् सूर्यके इस उत्तम माहात्म्यका श्रवण तथा पाठ करता है, वह सात रातके किये हुए पापोंसे मुक्त हो जाता है। मुनिश्रेष्ठ! इस प्रसङ्गमें सूर्यदेवके जो मन्त्र आये हैं, उनमेंसे एक-एकका भी यदि तीनों सन्ध्याओंके समय जप किया जाय तो वह समस्त पातकोंका नाश करनेवाला होता है। सूर्यके जिस मन्दिरमें इस समूचे माहात्म्यका पाठ किया जाता है, वहाँ भगवान् सूर्य अपना सान्निध्य नहीं छोड़ते। अतः ब्रह्मन्! यदि तुम्हें महान् पुण्यकी प्राप्ति अभीष्ट हो तो सूर्यके इस उत्तम माहात्म्यको मन-ही-मन धारण एवं जप करते रहो। द्विज श्रेष्ठ! जो सोनेके सींग और अत्यन्त सुन्दर शरीरवाली दुधारू गाय दान करता है तथा जो अपने मनको संयममें रखकर तीन दिनोंतक इस माहात्म्यका श्रवण करता है, उन दोनोंको समान ही पुण्यफलकी प्राप्ति होती है।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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