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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

मार्कण्डेयजी कहते हैं- मुने! शान्तिके इस प्रकार स्तुति करनेपर भगवान् अग्निदेव ज्वालाओंसे घिरे हुए उनके समक्ष प्रकट हुए। ब्रह्मन्! अग्निदेव उस स्तोत्रसे बहुत संतुष्ट थे। शान्ति उनके चरणोंमें पड़ गये; फिर उन्होंने मेघके समान गम्भीर वाणीमें शान्तिसे कहा-'विप्रवर! तुमने जो भक्तिपूर्वक मेरा स्तवन किया है, उससे मैं सन्तुष्ट हूँ और तुम्हें वर देना चाहता हूँ। तुम्हारी जो इच्छा हो, माँग लो।'

शान्तिने कहा- भगवन्! मैं तो कृतार्थ हो गया, क्योंकि आज आपके दिव्य स्वरूपका प्रत्यक्ष दर्शन कर रहा हूँ। तथापि मैं भक्तिसे विनीत होकर जो कुछ आपसे कहता हूँ, उसे आप सुनें। देव! मेरे आचार्य अपने आश्रमसे भाईके यज्ञमें गये हैं। वे जब लौटकर आयें तो इस स्थानको आपसे सनाथ देखें। साथ ही यदि आपकी मुझपर कृपा हो तो यह दूसरा वर भी दीजिये। मेरे गुरुदेवके कोई पुत्र नहीं है, उन्हें कोई सुयोग्य पुत्र प्राप्त हो; फिर उस पुत्रमें वे जितना स्नेह करें, उतना ही सम्पूर्ण भूतोंके प्रति भी उनका स्नेह हो। उनका हृदय सबके प्रति कोमल बन जाय। शान्तिकी यह बात सुनकर अग्निदेवने कहा- 'महामुने! तुमने गुरुके लिये वर दो माँगे हैं, अपने लिये नहीं। इससे तुमपर मेरी प्रसन्नता और भी बढ़ गयी है। तुमने गुरुके लिये जो कुछ माँगा है, वह सब प्राप्त होगा। उनके पुत्र होगा और सम्पूर्ण भूतोंके प्रति उनकी मैत्री भी बढ़ जायगी। उनका पुत्र 'भौत्य' नामसे प्रसिद्ध एवं मन्वन्तरोंका स्वामी होगा; साथ ही वह महाबली, महापराक्रमी और परम बुद्धिमान् होगा। जो एकाग्रचित्त होकर इस स्तोत्रके द्वारा मेरी स्तुति करेगा, उसकी समस्त अभिलाषाएँ पूर्ण होंगी तथा उसे पुण्यकी भी प्राप्ति होगी। यज्ञोंमें, पर्वके समय, तीर्थों में और होमकर्ममें जो धर्मके लिये मेरे इस स्तोत्रका पाठ करेगा, उसके लिये यह अत्यन्त पुष्टिकारक होगा। होम न करने तथा अयोग्य समयमें होम करने आदिके जो दोष हैं और अयोग्य पुरुषोंद्वारा हवन करनेसे जो दोष उत्पन्न होते हैं, उन सबको यह स्तोत्र सुननेमात्रसे शान्त कर देता है। पूर्णिमा, अमावास्या तथा अन्य पर्वोपर मनुष्योंद्वारा सुना हुआ मेरा यह स्तोत्र उनके पापोंका नाश करनेवाला होता है।'

मार्कण्डेयजी कहते हैं- मुने! यों कहकर भगवान् अग्नि उनके देखते-देखते बुझे हुए दीपककी भाँति तत्काल अदृश्य हो गये। अग्निदेवके चले जानेपर शान्तिका चित्त बहुत सन्तुष्ट था। उनके शरीरमें हर्षके कारण रोमाञ्च हो आया था। इसी अवस्थामें उन्होंने गुरुके आश्रममें प्रवेश किया और वहाँ अग्निदेवको पहलेकी ही भाँति प्रज्वलित देखा। इससे उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। इसी बीचमें उनके गुरु भी छोटे भाईके यज्ञसे अपने आश्रमको लौटे। शिष्य शान्तिने गुरुके सामने जाकर उनके चरणोंमें प्रणाम किया। उनके दिये हुए आसन और पूजाको स्वीकार करके गुरुने उनसे कहा- 'वत्स! तुमपर तथा अन्य जीवोंपर भी मेरा स्नेह बहुत बढ़ गया है। मैं नहीं जानता, यह क्या बात है। यदि तुम्हें कुछ पता हो तो बताओ।' तब शान्तिने अपने आचार्यसे अग्निके बुझने आदिकी सब बातें यथार्थरूपसे कह सुनायीं। यह सुनकर गुरुके नेत्र स्नेहके कारण सजल हो आये। उन्होंने शान्तिको हृदयसे लगा लिया और उन्हें अङ्ग-उपाङ्गोंसहित सम्पूर्ण वेदोंका ज्ञान कराया। तदनन्तर भूति मुनिके 'भौत्य' नामक पुत्र हुआ, जो भविष्यमें मनु होगा। उस मन्वन्तरमें चाक्षुष, कनिष्ठ, पवित्र, भ्राजिर तथा धारावृक-ये पाँच देवगण माने गये हैं; इन सबके इन्द्र होंगे शुचि, जो महाबली, महापराक्रमी तथा इन्द्रके समस्त गुणोंसे युक्त होंगे। आग्नीध्र, अग्निबाहु, शुचि, मुक्त, माधव, शुक्र और अजित-ये सात उस समयके सप्तर्षि होंगे। गुरु, गभीर, ब्रन, भरत, अनुग्रह, स्त्रीमानी, प्रतीर, विष्णु, संक्रन्दन, तेजस्वी तथा सुबल-ये मनुके पुत्र होंगे।

क्रौष्टुकिजी! इस प्रकार मैंने तुमसे चौदह मन्वन्तरोंका वर्णन किया। उन सबका क्रमशः श्रवण करके मनुष्य पुण्यका भागी होता है तथा उसकी सन्तान कभी क्षीण नहीं होती। प्रथम मन्वन्तरका वर्णन सुनकर मनुष्य धर्मका भागी होता है। स्वारोचिष मन्वन्तरकी कथा सुननेसे उसे सब कामनाओंकी प्राप्ति होती है। औत्तम मन्वन्तरके श्रवणसे धन, तामसके श्रवणसे ज्ञान तथा रैवत मन्वन्तरके श्रवणसे बुद्धि एवं सुन्दरी स्त्रीकी प्राप्ति होती है। चाक्षुष मन्वन्तरके श्रवणसे आरोग्य, वैवस्वतके श्रवणसे बल तथा सूर्यसावर्णिक मन्वन्तरके श्रवणसे गुणवान् पुत्र-पौत्रोंकी प्राप्ति होती है। ब्रह्मसावर्णिक मन्वन्तरके श्रवणसे महिमा बढ़ती है। धर्मसावर्णिकके श्रवणसे कल्याणमयी बुद्धि प्राप्त होती है और रुद्रसावर्णिकके श्रवणसे मनुष्य विजयी होता है। दक्षसावर्णिकके श्रवणसे मनुष्य अपने कुलमें श्रेष्ठ तथा उत्तम गुणोंसे युक्त होता है तथा रौच्य मन्वन्तरकी कथा सुननेसे वह शत्रुओंकी सेनाका संहार कर डालता है। भौत्य मन्वन्तरकी कथा श्रवण करनेपर मनुष्य देवताकी कृपा प्राप्त करता है। इतना ही नहीं, उसे अग्निहोत्रके पुण्य तथा गुणवान् पुत्रोंकी प्राप्ति होती है। मन्वन्तरोंके देवता, ऋषि, इन्द्र, मनु, मनुके पुत्र तथा राजवंशोंका वर्णन सुनकर मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। देवता, ऋषि, इन्द्र, राजा तथा मन्वन्तरोंके स्वामी-ये प्रसन्न होकर कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करते हैं। वैसी बुद्धि पाकर मनुष्य शुभ कर्म करता है, जिससे वह चौदह इन्द्रोंकी आयुपर्यन्त उत्तम गतिका उपभोग करता है।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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