गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
देव्युवाच ॥३७॥
गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत्पिबाम्यहम्।
मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्याशु देवताः॥३८॥
देवीने कहा- ॥३७॥ ओ मूढ़ ! मैं जब तक मधु पीती हूँ तब तक तू क्षणभर के लिये खूब गर्ज ले। मेरे हाथ से यहीं तेरी मृत्यु हो जानेपर अब शीघ्र ही देवता भी गर्जना करेंगे॥३८॥
ऋषिरुवाच॥३९॥
एवमुक्त्वा समुत्पत्य साऽऽरूढा तं महासुरम्।
पादेनाक्रम्य कण्ठे च शूलेनैनमताडयत्॥४०॥
ततः सोऽपि पदाऽऽक्रान्तस्तया निजमुखात्ततः।
अर्धनिष्क्रान्त एवासीद्देव्या वीर्येण संवृतः॥४१॥
अर्धनिष्क्रान्त एवासौ युध्यमानो महासुरः।
तथा महासिना देव्या शिरश्छित्त्वा निपातितः॥४२॥
ततो हाहाकृतं सर्वं दैत्यसैन्यं ननाश तत्।
प्रहर्षं च परं जग्मुः सकला देवतागणाः॥४३॥
तुष्टुवुस्तां सुरा देवीं सह दिव्यैर्महर्षिभिः।
जगुर्गन्धर्वपतयो ननृतुश्चाप्सरोगणाः॥४४॥
१. पा०-एवाति देव्या। २. किसी-किसी प्रतिमें इसके बाद-
'एवं स महिषो नाम ससैन्यः ससुहृद्गणः।
त्रैलोक्यं मोहयित्वा तु तया देव्या विनाशितः॥
त्रैलोक्यस्थैस्तदा भूतैर्महिषे विनिपातिते।
जयेत्युक्तं ततः सर्वैः सदेवासुरमानवैः ॥'-इतना अधिक पाठ है।
ऋषि कहते हैं- ॥३९॥ यों कहकर देवी उछली और उस महादैत्यके ऊपर चढ़ गयीं। फिर अपने पैरसे उसे दबाकर उन्होंने शूलसे उसके कण्ठमें आघात किया। [उनके पैरसे दबा होनेपर भी महिषासुर अपने मुखसे दूसरे रूपमें बाहर होने लगा]॥४०॥ अभी आधे शरीर से ही वह बाहर निकलने पाया था कि देवीने अपने प्रभाव से उसे रोक दिया॥४१॥ आधा निकला होनेपर भी वह महादैत्य देवी से युद्ध करने लगा। तब देवीने बहुत बड़ी तलवार से उसका मस्तक काट गिराया॥४२॥ फिर तो हाहाकार करती हुई दैत्यों की सारी सेना भाग गयी तथा सम्पूर्ण देवता अत्यन्त प्रसन्न हो गये॥४३॥ देवताओं ने दिव्य महर्षियों के साथ दुर्गादेवी का स्तवन किया। गन्धर्वराज गान करने लगे तथा अप्सराएँ नृत्य करने लगीं ॥४४॥
इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये महिषासुरवधो नाम तृतीयोऽध्यायः ॥३॥
उवाच ३, श्लोकाः ४१, एवम् ४४, एवमादितः ॥२१७ ॥
इस प्रकार श्रीमार्कण्डेयपुराणमें सावर्णिक मन्वन्तरकी कथाके अन्तर्गत देवी-माहात्म्यमें 'महिषासुर-वध' नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ॥३॥
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