गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
|
3 पाठकों को प्रिय 317 पाठक हैं |
अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
उधर छायासंज्ञाको ही संज्ञा समझकर भगवान् सूर्यने उससे दो पुत्र और एक मनोहर कन्या उत्पन्न की। छायासंज्ञा अपनी संतानोंको जितना प्यार करती थी, उतना संज्ञाके पुत्र-पुत्रीको नहीं। मनु तो उसके इस बर्तावको सह लेते थे, किन्तु यमसे सहन नहीं हुआ। उन्होंने क्रोधमें आकर उसे मारनेके लिये लात उठायी, किन्तु फिर क्षमा-भावका आश्रय ले उसके शरीरपर लात नहीं लगायी। तब छायासंज्ञा ने कुपित हो यमको शाप दिया-'मैं तुम्हारे पिताकी पत्नी हूँ, किन्तु तुम मर्यादाका उल्लङ्घन करके मुझे मारनेके लिये लात उठा रहे हो; इसलिये तुम्हारा यह पैर आज ही पृथ्वीपर गिर पड़ेगा।
माताका दिया हुआ शाप सुनकर यम भयसे व्याकुल हो उठे और अपने पिताके पास जा उन्हें प्रणाम करके बोले-'पिताजी! यह तो बड़े आश्चर्यकी बात है; ऐसा तो कभी किसीने भी नहीं देखा होगा कि माता वात्सल्य छोड़कर अपने पुत्रको शाप दे डाले। दुर्गुणी पुत्रोंके प्रति भी माताका दुर्भाव नहीं होता।' यमराजकी यह बात सुनकर भगवान् सूर्यने छायासंज्ञाको बुलाकर पूछा-'संज्ञा कहाँ गयी?'
वह बोली-'नाथ! मैं ही तो त्वष्टा प्रजापतिकी कन्या और आपकी पत्नी संज्ञा हूँ। आपने मुझसे ही ये संतान उत्पन्न किये हैं।' सूर्यने कई बार घुमा-फिराकर पूछा, किन्तु उसने सच्ची बात नहीं बतायीं। तब सूर्यदेव उसे शाप देनेको उद्यत हुए, यह देख उसने सब बातें ठीक-ठीक बता दी। असली बातका पता लगनेपर भगवान् सूर्य विश्वकर्माके घर गये। विश्वकर्माने अपने घर पधारे हुए त्रिलोकपूजित सूर्यदेवका बड़ी भक्तिके साथ पूजन किया। फिर संज्ञाका पता पूछनेपर उन्होंने कहा- 'भगवन्! वह मेरे घरपर आयी अवश्य थी, किन्तु मैंने पुनः उसे आपके ही घर भेज दिया।' तब सूर्यने समाधिस्थ होकर देखा, वह घोड़ीका रूप धारणकर उत्तरकुरु देशमें तपस्या कर रही है। उसकी तपस्याका एक ही उद्देश्य है, मेरे स्वामीकी आकृति सौम्य एवं शुभ हो जाय।' सूर्यको उसकी तपस्याका उद्देश्य ज्ञात हो गया; अत: उन्होंने विश्वकर्मासे कहा-'आप मेरे तेजको छाँट दीजिये।' तब उन्होंने संवत्सररूप चक्रवाले सूर्यके तेजको छाँट दिया, उस समय देवताओंने उनकी बड़ी प्रशंसा की।
|
- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य