गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
मृगीके यों कहनेपर राजाको बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने सोचा-'मेरा पुत्र मेरे शत्रुओंको परास्त करके इस पृथ्वीपर मनु होगा, यह कितने आनन्दकी बात है।' तदनन्तर कुछ कालके पश्चात् मृगीने उत्तम लक्षणोंसे सम्पन्न पुत्रको जन्म दिया। उसके उत्पन्न होनेपर सम्पूर्ण भूत आनन्दका अनुभव करने लगे। विशेषतः राजाको बड़ी प्रसन्नता हुई। मृगी भी शापसे छूटकर उत्तम लोकोंको चली गयी। तदनन्तर सब ऋषियोंने आकर उसकी भावी समृद्धि देख उस बालकका नामकरण किया-तामसी योनिमें पड़ी हुई माताके गर्भसे इसका जन्म हुआ है, इसलिये यह बालक संसारमें तामस नामसे विख्यात होगा।' तत्पश्चात् पिता अपने पुत्र तामसका लालन- पालन करने लगे। जब तामसको कुछ समझ हुई तो उसने पितासे पूछा-'तात! आप कौन हैं ?' मैं आपका पुत्र किस प्रकार हुआ? मेरी माता कौन हैं और आप किसलिये यहाँ आये हैं? यह सब सच-सच बताइये।
तब पिताने अपने राज्यसे च्युत होने आदिसे लेकर सब वृत्तान्त पुत्रको बतलाया। ये सब बातें सुनकर तापसने भगवान् सूर्यकी आराधना की और उनसे उपसंहारसहित सम्पूर्ण दिव्य अस्त्र प्राप्त किये। अस्त्र-शस्त्रोंका ज्ञाता होकर उसने सम्पूर्ण शत्रुओंको परास्त किया और उन्हें पिताके पास ले आकर उनकी आज्ञा मिलनेपर छुटकारा दिया। वह सदा अपने धर्मके पालनमें लगा रहता था। उसके पिता भी शरीर त्यागनेके पश्चात् तप और यज्ञसे उपार्जित पुण्यलोकोंमें गये। सारी पृथ्वीको जीतकर तामस राजा हुआ और फिर मनुके पदपर प्रतिष्ठित हुआ। अब तामस मन्वन्तरका वर्णन सुनो। उसमें सत्य, सुधी, सुरूप और हरि-ये चार देवगण हुए। इनमेंसे एक-एक गणमें सत्ताईस-सत्ताईस देवता हैं। उन देवताओंके इन्द्रका नाम शिखी था। वे अत्यन्त बली और महापराक्रमी थे। उन्होंने सौ यज्ञोंका अनुष्ठान करके इस पदको प्राप्त किया था। ज्योतिर्धर्मा, पृथु, काव्य, चैत्र, अग्नि, बलक और पीवर-ये ही सात उस समयके सप्तर्षि थे। नर, क्षान्ति, शान्त, दान्त, जानु और जङ्ग आदि महाबली राजा तामस मनुके पुत्र थे।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
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- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
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- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
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- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
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- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य