गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
मुकुन्द नामकी जो पाँचवीं निधि है, वह रजोगुणमयी है। उसकी दृष्टि पड़नेपर मनुष्य रजोगुणी होता है और वीणा, वेणु एवं मृदङ्ग आदि वाद्योंका संग्रह करता है। वह गाने और नाचनेवालोंको ही धन देता तथा सूत, वन्दी, धूर्त एवं नट आदिको प्रतिदिन भोगकी वस्तुएँ अर्पित करता है। यह निधि भी एक ही मनुष्यतक रह जाती है। इससे भिन्न जो नन्द नामकी महानिधि है, वह रजोगुण और तमोगुण दोनोंसे संयुक्त है। उसकी दृष्टि पड़नेपर मनुष्य अधिक जड़ता को प्राप्त होता है। वह समस्त धातुओं, रत्नों और पवित्र धान्य आदिका संग्रह तथा क्रय-विक्रय करता है। महामुने! वह मनुष्य स्वजनों तथा घरपर आये हुए अतिथियोंका आधार होता है, परन्तु अपमानकी थोड़ी-सी भी बात नहीं सहन करता। जब कोई उसकी स्तुति करता है, तब वह बहुत प्रसन्न होता है। स्तुति करनेवाला याचक जिस-जिस वस्तुकी इच्छा करता है, वह सब उसे देता है। उसका स्वभाव कोमल बन जाता है। उसके बहुत-सी स्त्रियाँ होती हैं, जो संतानवती और अत्यन्त सुन्दरी होती हैं। नन्दनामक निधि आठ भागसे बढ़ते-बढ़ते सात पीढ़ीतक मनुष्यका साथ देती है। वह सब पुरुषोंको दीर्घायु बनाती और दूरसे आये हुए बन्धु-बान्धवोंका भरण-पोषण करती है। परलोकके प्रति उसके हृदयमें आदर नहीं होता। इस निधिको पाया हुआ पुरुष सहवासियोंपर स्नेह नहीं रखता। पहलेके मित्रोंसे उदासीन हो जाता और दूसरोंसे प्रेम करता है। इसी प्रकार जो महानिधि सत्त्वगुण और रजोगुण दोनोंको साथ-साथ धारण करती है, उसका नाम नील है। उसके सम्पर्कमें आनेवाला पुरुष भी सत्त्वगुण एवं रजोगुणसे युक्त होता है। वह वस्त्र, कपास, धान्य, फल, फूल, मोती, मूंगा, शङ्ख, सीपी, काष्ठ तथा जलसे पैदा होनेवाली अन्यान्य वस्तुओंका संग्रह एवं क्रय- विक्रय करता है। वह मनुष्य तालाब और बावली बनवाता, बगीचे लगाता, नदियोंपर पुल बँधवाता तथा अच्छे-अच्छे वृक्षोंको रोपता है। चन्दन और फूल आदि भोगोंका उपभोग करके ख्याति लाभ करता है। यह नीलनिधि तीन पीढ़ियोंतक चलती है। शङ्ख नामकी जो आठवीं निधि है, वह रजोगुण और तमोगुणसे युक्त होती है तथा अपने स्वामीको भी ऐसे ही गुणोंसे युक्त बना देती है। ब्रह्मन्! यह निधि एक ही पुरुषतक सीमित रहती है, दूसरेको नहीं मिलती। क्रौष्टुके! जिसके पास शङ्ख नामक निधि होती है, उसके स्वरूपका वर्णन सुनो। वह अपने कमाये हुए अन्न और वस्त्रका अकेला ही उपभोग करता है। उसके कुटुम्बी लोग खराब अन्न खाते हैं। उन्हें पहननेको अच्छे वस्त्र नहीं मिलते। शङ्खनिधिसे युक्त मनुष्य सदा अपना ही पेट पालनेमें लगा रहता है। मित्र, भार्या, भ्राता, पुत्र तथा वधू आदिको कुछ भी नहीं देता। इस प्रकार ये निधियाँ मनुष्यों के अर्थकी अधिष्ठात्री देवी कहलाती हैं। जिस निधिका जैसा स्वभाव बतलाया गया है, उसकी दृष्टि पड़नेपर मनुष्य वैसे ही स्वभावका हो जाता है। पद्मिनी नामकी विद्या इन सब निधियोंकी स्वामिनी है। यह साक्षात् लक्ष्मीजीका स्वरूप है।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
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- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
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- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
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- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
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- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य