गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
मृगी बोली-आर्य! आपका कल्याण हो। मैं आपको ही प्राप्त करना चाहती हूँ। आपने ही मेरा चित्त चुराया है। इसीलिये मैं स्वेच्छासे मृत्युका वरण करती हूँ। आप मुझको बाण मारिये।
स्वरोचिष् ने कहा-देवि! तू चञ्चल कटाक्षवाली मृगी है और मैं मनुष्यरूपधारी जीव हूँ; फिर मेरे-जैसे पुरुषका तेरे साथ किस प्रकार संयोग होगा?
मृगी बोली-यदि मुझमें आपका चित्त अनुरक्त हो तो मेरा आलिङ्गन कीजिये। यदि आपका हृदय शुद्ध होता तो मैं आपकी इच्छाके अनुसार कार्य करूँगी और इतनेसे ही मैं यह समझूँगी कि आपने मेरा बड़ा आदर किया।
मार्कण्डेयजी कहते हैं-तब स्वरोचिष् ने उस हरिणीका आलिङ्गन किया। फिर तो वह तत्काल दिव्यरूपधारिणी देवीके रूपमें प्रकट हो गयी।
यह देख स्वरोचिषको बड़ा विस्मय हुआ। उन्होंने पूछा-'तुम कौन हो?' वह प्रेम और लज्जासे कुण्ठित वाणीमें बोली-'महामते ! मैं इस वनकी देवी हूँ। देवताओंके प्रार्थना करनेपर मैं आपकी सेवामें आयी हूँ, आप मेरे गर्भसे मनुको उत्पन्न कीजिये।
वनदेवीके यों कहनेपर स्वरोचिष् ने उसके गर्भसे तत्काल ही अपने-जैसा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न किया, जो समस्त शुभ लक्षणोंसे सुशोभित था। उसके जन्म लेते ही देवताओंके यहाँ बाजे बजने लगे। गन्धर्वराज गाने लगे और अप्सराएँ नाचने लगीं। नाग और तपस्वी ऋषि जलके छींटोंसे उस बालकका अभिषेक करने लगे। देवताओंने उसके ऊपर चारों ओरसे फूलोंकी वृष्टि की। उसके तेजको देखकर पिताने उसका नाम द्युतिमान् रखा, क्योंकि उसकी द्युतिसे सम्पूर्ण दिशाएँ प्रकाशित हो रही थीं! वह महान् बलवान् और अत्यन्त पराक्रमी था। स्वरोचिष् का पुत्र होनेके कारण स्वारोचिषके नामसे उसकी प्रसिद्धि हुई। तदनन्तर स्वरोचिष् अपनी स्त्रियोंको साथ ले तपस्या करनेके लिये दूसरे तपोवनमें चले गये।
वहाँ उनके साथ घोर तपस्या करके समस्त पापोंसे रहित हो वे निर्मल लोकोंको प्राप्त हुए। तत्पश्चात् भगवान् प्रजापतिने स्वरोचिष् के पुत्र द्युतिमान्को मनुके पदपर प्रतिष्ठित किया। अब उनके मन्वन्तरका वर्णन सुनो-स्वारोचिष मन्वन्तरमें पारावत और तुषित नामके देवता तथा विपश्चित् नामक इन्द्र हुए। उज, स्तम्ब, प्राण, दत्तोलि, ऋषभ, निश्चर तथा अर्ववीर-ये ही उस समयके सप्तर्षि थे। महात्मा स्वारोचिषके चैत्र और किम्पुरुष आदि सात पुत्र हुए, जो महान् पराक्रमी और पृथ्वीके पालक थे। जबतक स्वारोचिष मन्वन्तर था, तबतक उन्हींके वंशमें उत्पन्न हुए राजाओंने सारी पृथ्वीका राज्य भोगा। उनका मन्वन्तर द्वितीय कहलाता है। स्वरोचिष् और स्वारोचिषके जन्म और चरित्रका श्रवण करके श्रद्धालु मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।
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- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
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- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
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- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
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- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
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- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
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- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
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- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
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- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य