गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
विश्वेदेवोंकी यह बात सुनकर विश्वामित्रको बड़ा रोष हुआ। उन्होंने उन सबको शाप देते हुए कहा- 'तुम सब लोग मनुष्य हो जाओ।' फिर उनके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उन महामुनि ने कहा-'मनुष्य होनेपर भी तुम्हारे कोई सन्तान नहीं होगी, तुम विवाह भी नहीं करोगे। तुम्हारे मन में किसी के प्रति ईर्ष्या और द्वेष भी नहीं होगा। तुम पुनः काम-क्रोधसे मुक्त होकर देवत्वको प्राप्त कर लोगे। तदनन्तर वे विश्वेदेव अपने अंशसे कुरुवंशियोंके घरमें अवतीर्ण हुए। वे ही द्रौपदीके गर्भसे उत्पन्न पाँचों पाण्डवकुमार थे। महामुनि विश्वामित्रके शापसे ही उनका विवाह नहीं हुआ। जैमिनि! इस प्रकार हमने पाण्डवकुमारोंकी कथासे सम्बन्ध रखनेवाली बातें तुम्हें बतला दीं। अब और क्या सुनना चाहते हो?
जैमिनि बोले- आपलोगोंने क्रमश: मेरे प्रश्नोंके उत्तरमें ये सारी बातें बतायीं। अब मुझे हरिश्चन्द्रकी शेष कथा सुननेके लिये बड़ा कौतूहल हो रहा है। अहो, उन महात्माने बहुत बड़ा कष्ट उठाया। श्रेष्ठ पक्षियो! क्या उन्हें इस दुःखके अनुरूप ही कोई सुख भी कभी प्राप्त हुआ?
पक्षियोंने कहा- विश्वामित्रकी बात सुनकर राजा दुःखी हो धीरे-धीरे आगे बढ़े। उनके पीछे नन्हे-से पुत्र को गोद लिये रानी शैब्या चल रही थीं। दिव्य वाराणसीपुरी के पास पहुँचकर राजा ने विचार किया कि यह काशी मनुष्य की भोग्य भूमि नहीं है, इसपर केवल शूलपाणि भगवान् शङ्करका अधिकार है; अतः यह मेरे राज्य से बाहर है। ऐसा निश्चय करके दुःखसे पीड़ित हो उन्होंने अपनी अनुकूल पत्नी के साथ पैदल ही काशी में प्रवेश किया। पुरीमें प्रवेश करते ही उन्हें महर्षि विश्वामित्र सामने खड़े दिखायी दिये। उन्हें उपस्थित देख राजा हरिश्चन्द्र हाथ जोड़कर विनीत भावसे खड़े हो गये और बोले-'मुने ! ये मेरे प्राण, यह पुत्र और यह पत्नी यहाँ प्रस्तुत हैं। इनमेंसे जिसकी आपको आवश्यकता हो, उसे उत्तम अर्घ्यके रूपमें स्वीकार कीजिये अथवा हमलोग यदि आपकी और कोई सेवा कर सकते हों तो उसके लिये भी आज्ञा दीजिये।'
विश्वामित्र बोले- राजर्षे ! आज एक मास पूर्ण हो गया। यदि आपको अपनी बातका स्मरण हो तो मुझे राजसूय-यज्ञके लिये दक्षिणा दीजिये।
हरिश्चन्द्रने कहा- तपोधन ! अभी आज ही महीना पूरा हो रहा है। उसमें आधा दिन शेष है। इतने समयतक और प्रतीक्षा कीजिये। अब अधिक देरी नहीं होगी।
विश्वामित्र बोले- महाराज ! ऐसा ही सही। मैं फिर आऊँगा। यदि आज मुझे दक्षिणा न दोगे तो मैं तुम्हें शाप दे दूंगा।
यों कहकर विश्वामित्र चले गये। उस समय राजा इस चिन्तामें पड़े कि पहले स्वीकार की हुई दक्षिणा मैं इन्हें किस प्रकार हूँ। क्या मैं अपने प्राण त्याग दूं? इस अकिञ्चन दशामें किधर जाऊँ? यदि प्रतिज्ञा की हुई दक्षिणा दिये बिना ही मर जाऊँ तो ब्राह्मण के धन का अपहरण करने के कारण पापात्मा समझा जाऊँगा और मुझे अधम- से-अधम कीटयोनि में जन्म लेना पड़ेगा। अथवा यह दक्षिणा चुकानेके लिये अपनेको बेचकर किसीकी दासता स्वीकार कर लूँ? बस, अपनेको बेचना ही ठीक है।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य