गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान्, ऋक्ष, विन्ध्य और पारियात्र-ये सात ही यहाँ कुल-पर्वत हैं। इनके निकट और भी हजारों पर्वत हैं। ये सभी अत्यन्त विस्तृत, ऊँचे तथा रमणीय हैं। इनके शिखर भी बहुत-से हैं। इनके सिवा कोलाहल, वैभ्राज, मन्दर, दर्दुराचल, वातस्वन, वैद्युत, मैनाक, स्वरस, तुङ्गप्रस्थ, नागगिरि, रोचन, पाण्डुराचल, पुष्पगिरि, दुर्जयन्त, रैवत, अर्बुद, ऋष्यमूक, गोमन्त, कूटशैल, कृतस्मर, श्रीपर्वत और चकोर आदि सैकड़ों पर्वत और हैं, जिनसे मिले हुए म्लेच्छ और आर्य जनपद विभागपूर्वक स्थित हैं। वे लोग जिन श्रेष्ठ नदियोंका जल पीते हैं, उनके नाम सुनो। गङ्गा, सरस्वती, सिन्धु, चन्द्रभागा (चिनाब), यमुना, शतद्रू (सतलज), वितस्ता (झेलम), इरावती (रावी), कूहू, गोमती, धूतपापा, बाहुदा, दृषद्वती, विपाशा (व्यास), देविका, रंक्षु, निश्चीरा, गण्डकी, कौशिकी (कोसी)-ये सभी नदियाँ हिमालयकी तलैटीसे निकली हुई हैं। वेदस्मृति, वेदवती, वृत्रघ्नी, सिन्धु, वेणा, सानन्दना, सदानीरा, मही, पारा, चर्मण्वती, नूपी, विदिशा, वेत्रवती (बेतवा), क्षिप्रा तथा अवन्ती-इन नदियोंका उद्गमस्थान पारियात्र पर्वत है। महानद शोण (सोन), नर्मदा, सुरथा, अद्रिजा, मन्दाकिनी, दशार्णा, चित्रकूटा, चित्रोत्पला, तमसा, करमोदा, पिशाचिका, पिप्पलश्रोणि, विपाशा, वंजुला, सुमेरुजा, शुक्तिमती, शकुली, त्रिदिवाक्रमु और वेगवाहिनी- ये नदियाँ स्कन्दपर्वतकी शाखाओंसे निकली हैं। शिप्रा, पयोष्णी, निर्विन्ध्या, तापी, निषधावती, वेण्या, वैतरणी, सिनीवाली, कुमुद्वती, करतोया, महागौरी दुर्गा तथा अन्तःशिवा-ये पुण्यसलिला कल्याणमयी नदियाँ विन्ध्याचलकी घाटियोंसे निकली हैं। गोदावरी, भीमरथी, कृष्णावेणी, तुङ्गभद्रा, सुप्रयोगा, बाह्या तथा कावेरी-ये श्रेष्ठ सह्यपर्वतकी शाखाओंसे प्रकट हुई हैं। कृतमाला, ताम्रपर्णी, पुष्पजा और उत्पलावती-ये मलयाचलसे निकली हैं। इनका जल बहुत शीतल होता है। पितृसोमा, ऋषिकुल्या, इक्षुका, त्रिदिवा, लालिनी और वंशकरा-ये महेन्द्रपर्वतसे निकली मानी जाती हैं। ऋषिकुल्या, कुमारी, मन्दगा, मन्दवाहिनी, कुशा और पलाशिनी-इनका उद्गम शुक्तिमान् पर्वतसे हुआ है। ये सभी नदियाँ पवित्र हैं, सभी गङ्गा और सरस्वतीके समान हैं तथा सभी साक्षात् या परम्परासे समुद्रमें मिली हैं। ये सब-की-सब जगत् के लिये माता-सदृश हैं। इन सबको पापहारिणी माना गया है। द्विजश्रेष्ठ! इनके अतिरिक्त और भी हजारों छोटी नदियाँ हैं, जिनमें कुछ तो केवल वर्षाकालमें बहती हैं और कुछ सदा ही बहनेवाली हैं।
मत्स्य, अश्वकूट, कुल्य, कुन्तल, काशी, कोसल, अर्बुद, अर्कलिङ्ग, मलक और वृक-ये प्रायः मध्यदेशके जनपद कहे गये हैं। सह्यपर्वतके उत्तरका भूभाग, जहाँ गोदावरी नदी बहती है, सम्पूर्ण भूमण्डलमें सबसे अधिक मनोरम प्रदेश है। वहीं महात्मा भार्गवका मनोहर नगर गोवर्धन है। वहाँ अनेक जनपद हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- वाह्लीक (बलख), वाटधान, आभीर, कालतोयक, अपरान्त, शूद्र, पह्लव, चर्मखण्डिक, गान्धार, यवन, सिन्धु (सिंध), सौवीर, मद्र, शतद्रुज, कलिङ्ग, पारद, हारभूषिक, माठर, बहुभद्र, कैकेय और दशमालिक। ये क्षत्रियोंके उपनिवेश हैं तथा इनमें वैश्य और शूद्रकुलके लोग भी रहते हैं। काम्बोज (खंभात), दरद, बर्बर, हर्षवर्धन, चीन, तुषार, बहुल, बाह्यतोदर, आत्रेय, भरद्वाज, पुष्कल, कशेरुक, लम्पाक, शूलकार, चुलिक, जागुड, औषध और अनिभद्र-ये सब किरातोंकी जातियाँ हैं। तामस, हंसमार्ग, काश्मीर, गणराष्ट्र, शूलिक, कुहक, ऊर्णा तथा दार्व-ये समस्त देश उत्तरमें स्थित हैं।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य