गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
जहाँ गृहस्थ पुरुष श्रुति-स्मृतिके अनुकूल उपायसे जीविका चलाता हो, उसकी पत्नी उसीकी अनुगामिनी हो, पुत्र गुरु, देवता और पिताका पूजन करता हो तथा पत्नी भी पतिकी पूजामें संलग्न रहती हो, वहाँ अलक्ष्मीका भय कैसे हो सकता है। यक्ष्मन् ! जो प्रतिदिन संध्याके समय पानीसे धोया जाता और स्थान-स्थानपर फूलोंसे पूजित होता है, उस घरकी ओर तुम आँख उठाकर देख भी नहीं सकते। जिस घरमें बिछी हुई शय्याको सूर्य न देखते हों अर्थात् जहाँ लोग सूर्योदयसे पहले ही सोकर उठ जाते हों, जहाँ प्रतिदिन अग्नि और जल प्रस्तुत रहता हो, सूर्योदय होनेतक दीप जलता एवं सूर्यका पूर्ण प्रकाश पहुँचता हो,वह घर लक्ष्मीका निवास- स्थान है। जहाँ साँड़, चन्दन, वीणा, दर्पण, मधु, घृत, ब्राह्मण तथा ताँबेके पात्र हों, उस घरमें तुम्हारे लिये स्थान नहीं है।
दुःसह! जहाँ पके या कच्चे अन्नोंका अनादर और शास्त्रोंकी आज्ञाका उल्लङ्घन होता हो, उस घरमें तुम इच्छानुसार विचरण करो। जिस घरमें मनुष्यकी हड्डी हो और एक दिन तथा एक रात मुर्दा पड़ा रहा हो, उसमें तुम्हारा तथा अन्य राक्षसोंका भी निवास रहे। जो अपने भाई-बन्धुको तथा सपिण्ड एवं समानोदक मनुष्योंको अन्न और जल दिये बिना ही भोजन करते हैं, उस समय उन लोगोंपर तुम आक्रमण करो। जहाँ पुरवासी पहलेसे ही बड़े-बड़े उत्सव मनानेमें प्रसिद्ध हो चुके हों और पहलेकी ही भाँति अब अपने घरपर उत्सव मनाते हों, ऐसे घरों में न जाना। जो सूपकी हवासे, भीगे कपड़ेके जलकी बूंदोंसे तथा नखके अग्रभागके जलसे स्नान करते हों, उन कुलक्षणी पुरुषोंके पास अवश्य जाओ। जो पुरुष देशाचार, प्रतिज्ञा, कुलधर्म, जप, होम, मङ्गल, देवयज्ञ, उत्तम शौच तथा लोक-प्रचलित धर्मोंका भलीभाँति पालन करता हो, उसके संसर्गमें तुम्हें नहीं जाना चाहिये।
मार्कण्डेयजी कहते हैं- दुःसहसे ऐसी बात कहकर ब्रह्माजी वहीं अन्तर्धान हो गये। फिर उसने भी ब्रह्माजीकी आज्ञाका उसी प्रकार पालन किया।
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- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
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- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
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- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
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- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
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- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
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- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
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- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
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- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
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- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य