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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

योगीके लिये भिक्षाप्राप्त अन्न, जौ की लप्सी, छाछ, दूध, जौकी खिचड़ी, फल, मूल, कँगनी, कण, तिलका चूर्ण और सत्तू-ये आहार उत्तम और सिद्धिदायक हैं। अत: योगी इन्हें भक्तिपूर्वक एकाग्रचित्तसे भोजनके काममें ले। पहले एक बार जलसे आचमन करके मौन हो क्रमशः पाँच ग्रासोंकी प्राणरूप अग्निमें आहुति दे। 'प्राणाय स्वाहा' कहकर पहला ग्रास मुँहमें डाले। यही प्रथम आहुति मानी गयी है। इसी प्रकार 'अपानाय स्वाहा' से दूसरी, 'समानाय स्वाहा' से तीसरी, 'उदानाय स्वाहा' से चौथी और 'व्यानाय स्वाहा' से पाँचवीं आहुति दे। फिर प्राणायामके द्वारा इन्हें पृथक् करके शेष अन्न इच्छानुसार भोजन करे। भोजनके अन्तमें फिर एक बार आचमन करे। तत्पश्चात् हाथ-मुँह धोकर हृदयका स्पर्श करे। चोरी न करना, ब्रह्मचर्यका पालन, त्याग, लोभका अभाव और अहिंसा-ये भिक्षुओंके पाँच व्रत हैं। क्रोधका अभाव, गुरुकी सेवा, पवित्रता, हलका भोजन और प्रतिदिन स्वाध्याय-ये पाँच उनके नियम बताये गये हैं।

* अस्तेयं ब्रह्मचर्यं च त्यागोऽलोभस्तथैव च।
व्रतानि पञ्च भिक्षूणामहिंसापरमाणि वै॥
अक्रोधो गुरुशुश्रूषा शौचमाहारलाघवम्।
नित्यस्वाध्याय इत्येते नियमाः पञ्च कीर्तिताः ॥
(४१। १६-१७)

जो योगी 'यह जानने योग्य है, वह जानने योग्य है' इस प्रकार भिन्न-भिन्न विषयोंकी जानकारीके लिये लालायित-सा होकर इधर-उधर विचरता है, वह हजारों कल्पोंमें भी ज्ञातव्य वस्तुको नहीं पा सकता। आसक्तिका त्याग करके, क्रोधको जीतकर, स्वल्पाहारी और जितेन्द्रिय हो, बुद्धिसे इन्द्रियद्वारोंको रोककर मनको ध्यानमें लगावे। योगयुक्त रहनेवाला योगी सदा एकान्त स्थानोंमें, गुफाओं और वनोंमें भलीभाँति ध्यान करे। वाग्दण्ड, कर्मदण्ड और मनोदण्ड-ये तीन दण्ड जिसके अधीन हों, वही महायति त्रिदण्डी है। राजन्! जिसकी दृष्टिमें सत्-असत् तथा गुण-अवगुणरूप यह समस्त जगत् आत्मस्वरूप हो गया है, उस योगीके लिये कौन प्रिय है और कौन अप्रिय। जिसकी बुद्धि शुद्ध है, जो मिट्टीके ढेले और सुवर्णको समान समझता है, सब प्राणियोंके प्रति जिसका समान भाव है, वह एकाग्रचित्त योगी उस सनातन अविनाशी परम पदको प्राप्त होकर फिर इस संसारमें जन्म नहीं लेता। वेदोंसे सम्पूर्ण यज्ञकर्म श्रेष्ठ हैं, यज्ञोंसे जप, जपसे ज्ञानमार्ग और उससे आसक्ति एवं रागसे रहित ध्यान श्रेष्ठ है। ऐसे ध्यानके प्राप्त हो जानेपर सनातन ब्रह्मकी उपलब्धि होती है। जो एकाग्रचित्त, ब्रह्मपरायण, प्रमादरहित, पवित्र, एकान्तप्रेमी और जितेन्द्रिय होता है, वही महात्मा इस योगको पाता है और फिर अपने उस योगसे ही वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है।*

* त्यक्तसङ्गो जितक्रोधो लघ्वाहारो जितेन्द्रियः।
पिधाय बुद्ध्या द्वाराणि मनो ध्याने निवेशयेत्॥
शून्येष्वेवावकाशेषु गुहासु च वनेषु च।
नित्ययुक्तः सदा योगी ध्यानं सम्यगुपक्रमेत् ॥
वाग्दण्डः कर्मदण्डश्च मनोदण्डश्च ते त्रयः।
यस्यैते नियता दण्डाः स त्रिदण्डी महायतिः॥
सर्वमात्ममयं यस्य सदसज्जगदीदृशम्।
गुणागुणमयं तस्य कः प्रियः को नृपाप्रियः॥
विशुद्धबुद्धि समलोष्टकाञ्चनः समस्तभूतेषु समः समाहितः।
स्थानं परं शाश्वतमव्ययं च परं हि गत्वा न पुनः प्रजायते ॥
वेदाच्छ्रेष्ठाः सर्वयज्ञक्रियाश्च यज्ञाज्जप्यं ज्ञानमार्गश्च जप्यात्।
ज्ञानाद्धयानं सङ्गरागव्यपेतं तस्मिन् प्राप्ते शाश्वतस्योपलब्धिः॥
समाहितो ब्रह्मपरोऽप्रमादी शुचिस्तथैकान्तरतिर्यतेन्द्रियः।
समाप्नुयाद् योगमिमं महात्मा विमुक्तिमाप्नोति ततः स्वयोगतः॥
(अ० ४१। २०-२६)

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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